चतुर्विंशत्यधिकशततम (124) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: चतुर्विंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
भीष्म जी ने कहा- बेटा! कोई मनुष्य साम से प्रसन्न होता है और कोई दान से। अत: पुरुष के स्वभाव को समझकर दोनों में से एक को अपनाना चाहिये। राजन! भरतश्रेष्ठ! अब तुम साम के गुणों को सुनो। साम के द्वारा मनुष्य भयानक-से-भयानक प्राणी को वश में कर सकता है। इस विषय में एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है, जिसके अनुसार कोई ब्राह्मण किसी जंगल में किसी राक्षस के चंगुल में फंसकर भी सामनीति के द्वारा उससे मुक्त हो गया था। एक बुद्धिमान एवं वाचाल ब्राह्मण किसी निर्जन वन में घूम रहा था। उसी समय किसी राक्षस ने आकर उसे खाने की इच्छा से पकड़ लिया। बेचारा ब्राह्मण बड़े कष्ट में पड़ गया। ब्राह्मण की बुद्धि तो अच्छी थी ही, वह शास्त्रों का विद्वान भी था। इसलिये उस अत्यन्त भयानक राक्षस को देखकर भी वह न तो घबराया और न व्यथित ही हुआ। बल्कि उसके प्रति उसने सामनीति का ही प्रयोग किया। राक्षस ने ब्राह्मण के शान्तिमय वचनों की प्रशंसा करके उनके सामने अपना प्रश्न उपस्थित किया और कहा- 'यदि मेरे प्रश्न का उत्तर दे दोगे तो तुम्हें छोड़ दूँगा। बताओ मैं किस कारण से अत्यन्त दुर्बल और सफेद, पाण्डुद्ध हो गया हूँ।' यह सुनकर ब्राह्मण ने दो घड़ी तक विचार करके शान्तभाव से निम्नांकित गाथाओं, वचनों द्वारा उस राक्षस के प्रश्न का उत्तर देना आरम्भ किया। ब्राह्मण बोला- राक्षस! निश्चय ही तुम सुहृदजनों से अलग होकर परदेश में दूसरे लोगों के साथ रहते और अनुपम विषयों का उपभोग करते हो। इसीलिये चिन्ता के कारण तुम दुबले एवं सफेद होते जा रहे हो। निशाचर! तुम्हारे मित्र तुम्हारे द्वारा भलीभाँति सम्मानित होने पर भी अपने स्वभाव दोष के कारण तुमसे विमुख रहते हैं, इसीलिये तुम चिन्तावश दुबले होकर सफेद पड़ते जा रहे हो। जो गुणों में तुम्हारी अपेक्षा निम्न श्रेणी के हैं, वे जड़ मनुष्य भी धन और ऐश्वर्य में अधिक होने के कारण निश्चय ही सदा तुम्हारी अवहेलना किया करते हैं, इसीलिये तुम दुर्बल और सफेद (पीले) होते जा रहे हो। तुम गुणवान, विद्वान एवं विनीत होने पर भी सम्मान नहीं पाते और गुणहीन तथा मूढ़ व्यक्तियों को सम्मानित होते देखते हो, इसीलिये तुम्हारे शरीर का रंग फीका पड़ गया है और तुम दुर्बल हो गये हो। जीवन निर्वाह का कोई उपाय न होने से तुम क्लेश उठाते होगे, किन्तु अपने गौरव के कारण जीविका के प्रतिग्रह आदि उपायों की निन्दा करते हुए उन्हें स्वीकार नहीं करते होगे। यही तुम्हारी उदासी और दुर्बलता का कारण है। साधो! तुम सज्जनता के कारण अपने शरीर को कष्ट देकर भी जब किसी का उपकार करते हो, तब वह तुम्हें अपनी शक्ति से पराजित समझता है, इसीलिये तुम कृशकाय और सफेद होते जा रहे हो। जिनका चित्त काम और क्रोध से आक्रान्त है, अत: जो कुमार्ग पर चलकर कष्ट भोग रहे हैं। सम्भवत: ऐसे ही लोगों के लिए तुम सदा चिन्तित रहते हो, इसीलिये दुर्बल होकर सफेद (पीले) पड़ते जा रहे हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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