एकादशाधिकशततम (111) अध्याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 55-75 का हिन्दी अनुवाद
राजन! जो पुत्र अपने माता-पिता का अनादर करता है, वह भी मरने के बाद पहले गदहा नामक प्राणी होता है। गदहे का शरीर पाकर वह दस वर्षों तक जीवित रहता है। फिर एक साल तक घड़ियाल रहने के बाद मानव योनि में उत्पन्न होता है। जिस पुत्र के ऊपर माता और पिता दोनों ही रुष्ट होते हैं, वह गुरुजनों के अनिष्ट चिंतन के कारण मृत्यु के बाद गदहा होता है। गदहे की योनि में वह दस मास तक जीवित रहता है। उसके बाद चौदह महीनों तक कुत्ता और सात माह तक बिलाव होकर अन्त में वह मनुष्य की योनि में जन्म ग्रहण करता है। माता-पिता की निंदा करके अथवा उन्हें गाली देकर मनुष्य दूसरे जन्म में मैना होता है। नरेश्वर! जो माता-पिता को मारता है, वह कछुआ होता है। दस वर्ष तक कछुआ रहने के पश्चात तीन वर्ष साही और छः महीने तक सर्प होता है। उसके अनन्तर वह मनुष्य योनि में जन्म लेता है। जो पुरुष राजा के टुकड़े खाकर पलता हुआ भी मोहवश उसके शत्रुओं की सेवा करता है, वह मरने के बाद वानर होता है। दस वर्षों तक वानर, पांच वर्षों तक चूहा और छः महीनों तक कुत्ता होकर वह मनुष्य का जन्म पाता है। दूसरों की धरोहर हड़प लेने वाला मनुष्य यमलोक में जाता है और क्रमश: सौ योनियों में भ्रमण करके अन्त में कीड़ा होता है। भारत! कीड़े की योनि में वह पन्द्रह वर्षों तक जीवित रहता है और अपने पापों का क्षय करके अन्त में मनुष्य योनि में जन्म लेता है। दूसरों के दोष ढूँढने वाला मनुष्य हरिण की योनि में जन्म लेता है तथा जो अपनी खोटी बुद्धि के कारण किसी के साथ विश्वासघात करता है, वह मनुष्य मछली होता है। भारत! आठ वर्षों तक मछली रहकर मरने के बाद वह चार मास तक मृग होता है। उसके बाद बकरे की योनि में जन्म लेता है। बकरा पूरे एक वर्ष पर मृत्यु को प्राप्त होने के पश्चात कीड़ा होता है। उसके बाद उस जीव को मनुष्य का जन्म मिलता है। महाराज! जो पुरुष लज्जा का परित्याग करके अज्ञान और मोह के वशीभूत होकर दान, जौ, तिल, उड़द, कुलथी, सरसों, चना, मटर, मूंग, गैहूँ और तीसी तथा दूसरे-दूसरे अनाजों की चोरी करता है, वह मरने के बाद पहले चूहा होता है। राजन! फिर वह चूहा मृत्यु के पश्चात सूअर होता है। नरेश्वर! वह सूअर जन्म लेते ही रोग से मर जाता है। पृथ्वीनाथ! फिर उसी कर्म से वह मूढ़ जीव कुत्ता होता है और पांच वर्ष तक कुत्ता होकर अन्त में मनुष्य का जन्म पाता है। परस्त्रीगमन का पाप करके मनुष्य क्रमश: भेड़िया, कुत्ता, सियार, गीध, कंक, सांप और बगुला होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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