षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: षट्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 25-33 का हिन्दी अनुवाद
भयंकर मृग और पक्षी सामने आ रहे हैं और क्षत्रियों के संहार की सूचना देने वाले अनेक प्रकार के घोर उत्पात दिखायी देते हैं। राजा दुर्योधन! विशेषतः यहीं हमारे लिये विनाश सूचक अपशकुन हो रहे हैं। तुम्हारी सेना के ऊपर जलती हुई उल्काएँ गिर गिरकर उसे पीड़ा देती हैं। तुम्हारे वाहन ( हाथी - घोड़े ) अप्रसन्न तथा रोते से दीखते हैं। सेना के चारो ओर गीध बैठे हैं, इससे जान पड़ता है, तुम अपनी सेना को अर्जुन के बाणों से पीड़ित होती देख मन में संताप करोगे। तुम्हारी सेना अभी से तिरस्कृत सी हो रही है, कोई भी सैनिक युद्ध करना नहीं चाहता है। समस्त सैनिकों के मुख पर भारी उदासी छा गयी है। सब अचेत - हतोत्साह हो रहे हैं। अतः हम गौओं को हस्तिनापुर की ओर भेजकर सेना की व्यूह रचना करके शत्रु पर प्रहार करने के लिये उद्यत हो जायँ। इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह के अवसर पर उत्पात सूचक अपशकुन सम्बन्धी छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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