महाभारत विराट पर्व अध्याय 29 भाग 2

एकोनत्रिंश (29) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: भाग 2 का हिन्दी अनुवाद

इस समय मनुष्य लोक में दैत्य, मानव तथा राक्षसों में चार ही ऐसे पुरुषसिंह सुने जाते हैं, जो इस भूतल वर आत्मबल, बाहुबल, धैर्य तथा शारीरिक शक्ति में इन्द्र के समान हैं। वे ही समस्त प्राणधारियों में उत्तम हैं। उन सबमें सदा एक समान प्राणशक्ति मानी गयी है। वे सम्पूर्ण बल और पराक्रम से सम्पन्न हैं।

उनके नाम इस प्रकार हैं- बलदेव, भीमसेन, पराक्रमी मद्रराज शल्य और कीचक। इनमें कीचक का चैथा स्थान हैं। इनके समान कोई पाँचवाँ वीर मेरे सुनने में नहीं आया। ये सभी परस्पर समान बलशाली तथा (मौका पड़ने पर) एक दूसरे को जीतने के लिये उत्सुक रहे हैं। इनके मन में एक दूसरे के प्रति सदा रोष भरा रहा है और ये परस्पर बाहुयुद्ध करना चाहते रह हैं। इस आधार पर मैं भीमसेन का पता पा लेता हूँ और मेरे मन में स्पष्ट रूप से यह बात आ जाती है कि पाण्डव अवश्य जीवित हैं। अब मुझे ऐसा लगता है कि विराट नगर में कीचक को भीमसेन ने ही मारा है।

सैरन्ध्री को मैं द्रौपदी समझता हूँ। इस विषय में कोई अधिक विचार नहीं करना चाहिये। मुझे संदेह है कि द्रौपदी के निमित्त से भीमसेन ने ही गन्धर्व का नाम धारण करके रात्रि के समय महाबली कीचक को मारा होगा। भीमसेन के सिवा दूसरा कौन ऐसा वीर है, जो बिना अस्त्र-शस्त्र के केवल शारीरिक बाहुबल से कीचक को मार सके तथा सम्पूर्ण अंगों को चूर-चूर करने और शीघ्रतापूर्वक अस्थि, चर्म एवं मांस के उस चूर्ण समुदाय को मसलकर मांसपिण्ड बना देने में समर्थ हो ? अतः यह निश्चितरूप से कहा जा सकता है कि दूसरा रूप धारण करके भीमसेन ने ही यह पराक्रम किया है। गन्धर्वनामधारी भीम ने ही कृष्णा के लिये रात के समय सूतपुत्रों का वध किया है, इसमें संशय नहीं है। पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर के निवास स्थान के प्रभाव से देश और समुदाय के जो गुण बताये हैं, उनमें भी बहुत से गुण मत्स्यराष्ट्र में (दूतों द्वारा) मेरे सुनने में आया हे।

इससे मैं मानता हूँ कि पाण्डव राजा विराट के रमणीय नगर में निवास करते और छद्मवेश धारण करके गुप्तरूप से विचरते हैं, अतः यहाँ की यात्रा करनी चाहिये। हम लोग वहाँ चलकर मत्स्यराष्ट्र को तहस-नहस करेंगे और राजा विराट के गोधन पर अपना अधिकार कर लेगे। उनके गोधन का अपहरण कर लेने पर निश्चय ही पाण्डव भी हम लोगों के साथ युद्ध करेंगे। ऐसी दशा में यदि अज्ञातवास का समय पूर्ण होने से पूर्व ही हम पाण्डवों को देख लेंगे, तो उन्हें पुनः दूसरी बार बारह वर्षों के लिये वन में प्रवेश करना पडत्रेगा। अतः दों में से एक भी हो जाय, तो भी हमें लाभ ही होगा। इस रणयात्रा से हमारे कोष की वृद्धि होगी और शत्रुओं का नाश हो जायगा।

मत्स्यदेश का राजा विराट मेरे प्रति तिरस्कार का भाव रखकर यह भी कहा करता है कि पूर्वकाल में धर्मराज युधिष्ठिर ने जिसका पालन-पोषण किया हो, वह दुर्योधन के अधिकार में कैसे आ सकता है ? अतः निश्चय ही मत्स्यदेश पर आक्रमण करना चाहिये। वहाँ की यात्रा अवश्य की जाय।यदि आप सब लोगों को अच्छा लगे, तो मैं इस कार्य को नीति के अनुकूल मानता हूँ।


इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत गोहरणपर्व में गुप्तचर भेजने के विषय में कृपाचार्यवचन सम्बन्धी उनतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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