त्रिपच्चाशदधिकद्विशततम (253) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: त्रिपच्चाशदधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 22-29 का हिन्दी अनुवाद
भरतश्रेष्ठ राजन्! कर्ण की यह बात सुनकर राजा दुर्योधन ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उससे कहा- ‘वीर! मैं धन्य हूँ, तुम्हारे अनुग्रह का पात्र हूँ; क्योंकि तुम जैसे महाबली सुहृद् सदा मेरे हितसाधन में लगे रहते हैं। आज मेरा जन्म सफल हो गया। वीरवर! जब तुम्हें विश्वास है कि तुम्हारे द्वारा सब शत्रुओं का संहार हो सकता है, तब तुम दिग्विजय के लिये यात्रा करो। तुम्हारा कल्याण हो। मुझे आवश्यक व्यवस्था के लिये आज्ञा दो। जनमेजय! बुद्धिमान् दुर्योधन के इस प्रकार कहने पर कर्ण ने यात्रा-सम्बन्धी सारी आवश्यक तैयारी के लिये आज्ञा दे दी। तदनन्तर महान् धनुर्धर कर्ण ने मागंलिक शुभ पदार्थों से जल के द्वारा स्नान करके द्विजातियों की आशीर्वादमय वाणी से सम्मानित एवं प्रशंसित हो शुभ नक्षत्र, शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त में यात्रा की। उस समय वह अपने रथ की घर्घराहट से चराचर भूतों सहित समस्त त्रिलोकी को प्रतिध्वनित कर रहा था।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत घोषयात्रापर्व में कर्णदिग्विजय विषयक दो सौ तिरपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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