महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 18 श्लोक 20-31

अष्‍टादश (18) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: अष्‍टादश अध्याय: श्लोक 20-31 का हिन्दी अनुवाद
  • यह देख सुशर्मा, सुरथ, सुधर्मा, सुधन्‍वा और सुबाहु ने दस-दस बाणों से किरीटधारी अर्जुन को घायल कर दिया। (20)
  • फिर कपिध्‍वज अर्जुन ने भी पृथक-पृथक बाण मारकर उन सबको घायल कर दिया। भल्‍लों द्वारा उनकी ध्‍वजाओं तथा सायकों को भी काट गिराया। (21)
  • सुधन्‍वा का धनुष काटकर उसके घोड़ों को भी बाणों से मार डाला। फिर शिरस्‍त्राण सहित उसके मस्‍तक को भी काटकर धड़ से नीचे गिरा दिया। (22)
  • वीरवर सुधन्‍वा के धराशायी हो जाने पर उसके अनुगामी सैनिक भयभीत हो गये, वे भय के मारे वहीं भाग गये, जहाँ दुर्योधन की सेना थी। (23)
  • तब क्रोध में भरे हुए इन्‍द्रकुमार अर्जुन ने बाण-समूहों की अविच्छिन्‍न वर्षा करके उस विशाल वाहिनी का उसी प्रकार संहार आरम्‍भ किया, जैसे सूर्यदेव अपनी किरणों द्वारा महान अधंकार का नाश करते हैं। (24)
  • तदनन्‍तर जब संशप्‍तकों की सारी सेना भागकर चारों ओर छिप गयी और सव्‍यसाची अर्जुन अत्‍यन्‍त क्रोध में भर गये, तब उन त्रिगर्तदेशीय योद्धाओं के मन में भारी भय समा गया। (25)
  • अर्जुन के झुकी हुई गाँठ वाले बाणों की मार खाकर वे सभी सैनिक वहाँ भयभीत मृगों की भाँति मोहित हो गये। (26)
  • तब क्रोध में भरे हुए त्रिगर्तराज ने अपने उन महारथियों से कहा-'शूरवीरों! भागने से कोई लाभ नहीं है। तुम भय न करो।' (27)
  • 'सारी सेना के सामने भयंकर शपथ खाकर अब यदि दुर्योधन की सेना में जाओगे तो तुम सभी श्रेष्‍ठ महारथी क्‍या जवाब दोगे?' (28)
  • हमें युद्ध में ऐसा कर्म करके किसी प्रकार संसार में उपहास का पात्र नहीं बनना चाहिये। अत: तुम सब लोग लौट आओ। हमें यथा शक्ति एक साथ संगठित होकर युद्धभूमि में डटे रहना चाहिये।' (29)
  • राजन! त्रिगर्तराज के ऐसा कहने पर वे सभी वीर बारंबार गर्जना करने और एक-दूसरे में हर्ष एवं उत्‍साह भरते हुए शंख बजाने लगे। (30)
  • तब वे समस्‍त संशप्‍तकगण और नारायणी सेना के ग्‍वाले मृत्यु को ही युद्ध से निवृति का अवसर मानकर पुन: लौट आये। (31)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवध पर्व में सुधन्‍वा का वधविषयक अठारहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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