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महाभारत: उद्योग पर्व: षट्पंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
- वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन समस्त राजाओं के साथ शान्तनुनन्दन भीष्म के पास जाकर हाथ जोड़कर इस प्रकार बोला- (1)
- ‘ पितामह! कितनी ही बड़ी सेना क्यों न हो? किसी योग्य सेनापति के बिना युद्ध में जाकर चींटियों की पंक्ति के समान छिन्न-भिन्न हो जाती है। (2)
- ‘दो पुरुषों की बुद्धि कभी समान नहीं होती। यदि दोनों ओर योग्य सेनापति हों तो उनका शौर्य एक-दूसरे की होड़ में बढ़ता है। (3)
- ‘महामते! सुना जाता है कि समस्त ब्राह्मणों ने अपनी कुशमयी ध्वजा फहराते हुए पहले भी अमित तेजस्वी हैहयवंश के क्षत्रियों पर आक्रमण किया था। (4)
- ‘पितामह! उस समय ब्राह्मणों के साथ वैश्यों और शूद्रों ने भी उन पर धावा किया था। एक ओर तीनों वर्ण के लोग थे और दूसरी ओर चुने हुए श्रेष्ठ क्षत्रिय। (5)
- ‘तदनन्तर जब युद्ध आरम्भ हुआ, तब तीनों वर्णों के लोग बारंबार पीठ दिखाकर भागने लगे। यद्यपि इनकी सेना अधिक थी तो भी क्षत्रियों ने एकमत होकर उन पर विजय पायी। (6)
- ‘पितामह! तब उन श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने क्षत्रियों से ही पूछा हमारी पराजय का क्या कारण है? उस समय धर्मज्ञ क्षत्रियों ने उनसे यथार्थ कारण बता दिया।(7)
- वे बोले- हम लोग एक परम बुद्धिमान पुरुष को सेनापति बनाकर युद्ध में उसी का आदेश सुनते और मानते हैं। परंतु आप सब लोग पृथक-पृथक अपनी ही बुद्धि के अधीन हो मनमाना बर्ताव करते हैं। (8)
- यह सुनकर उन ब्राह्मणों ने एक शूरवीर एवं नीतिनिपुण ब्राह्म्ण को सेनापति बनाया और क्षत्रियों पर विजय प्राप्त की। (9)
- इस प्रकार जो लोग किसी हितैषी, पापरहित तथा युद्धकुशल शूरवीर को सेनापति बना लेते हैं, वे संग्राम में शत्रुओं पर अवश्य विजय पाते हैं। (10)
- आप सदा मेरा हित चाहने वाले तथा नीति में शुक्राचार्य के समान हैं। आपको आपकी इच्छा के बिना कोई मार नहीं सकता। आप सदा धर्म में ही स्थित रहते हैं, अत: हमारे प्रधान सेनापति हो जाइये। (11)
- जैसे किरणों वाले तेजस्वी पदर्थों के सूर्य, वृक्ष और औषधियों के चन्द्रमा, यक्षों के कुबेर, देवताओं के इन्द्र, पर्वतों के मेरू, पक्षियों के गरूड़, समस्त देवयोनियों के कार्तिकेय और वसुओं के अग्निदेव अधिपति एवं संरक्षक हैं उसी प्रकार आप हमारी समस्त सेनाओं के अधिनायक और संरक्षक हो जाइये। (12-13)
- इन्द्र के द्वारा सुरक्षित देवताओं की भाँति आपके संरक्षण में रहकर हम लोग निश्चय ही देवगणों के लिये भी अजेय हो जायेंगे। (14)
- जैसे कार्तिकेय देवताओं के आगे-आगे चलते हैं, वैसे ही आप हमारे अगुआ हों। जैसे बछड़े साँड़ के पीछे चलते हैं, उसी प्रकार हम आपका अनुसरण करेंगे। (15)
- भीष्म ने कहा- भारत! तुम जैसा कहते हो वह ठीक है, पर मेरे लिये जैसा तुम हो, वैसे ही पाण्डव हैं। (16)
- नरेश्वर! मैं पाण्डवों को उनके पूछने पर अवश्य ही हित की बात बताऊंगा और तुम्हारे लिये युद्ध करूंगा। ऐसी ही मैंने प्रतिज्ञा की है। (17)
- मैं इस भूतलपर नरश्रेष्ठ कुन्ती पुत्र अर्जुन के सिवा दूसरे किसी भी योद्धा को अपने समान नहीं देखता हूँ। (18)
- महाबुद्धिमान पाण्डुकुमार अर्जुन अनेक दिव्यास्त्रों का ज्ञान रखते हैं; परंतु वे मेरे सामने आकर प्रकट रूप में कभी युद्ध नहीं कर सकते। (19)
- अर्जुन की ही भाँति मैं भी यदि चाहूँ तो अपने शस्त्रों के बल से देवता, मनुष्य, असुर तथा राक्षसों सहित इस सम्पूर्ण जगत को क्षणभर में निर्जीव बना दूँ। (20)
- परंतु जनेश्वर! मैं पाण्डु के पुत्रों की किसी तरह हत्या नहीं करूंगा। कुरुनन्दन! यदि पाण्डव इस युद्ध में मुझे पहले ही नहीं मार डालेंगे तो मैं अपने अस्त्रों के प्रयोग द्वारा प्रतिदिन उनके पक्ष के दस हजार योद्धाओं का वध करता रहूंगा, मैं इस प्रकार इनकी सेना का संहार करूंगा। (21-22)
- राजन! मैं अपनी इच्छा के अनुसार एक शर्त पर तुम्हारा सेनापति होऊँगा। उसके बदले दूसरी शर्त नहीं मानूगां। उस शर्त को तुम मुझसे यहाँ सुनलो। (23)
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