महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-45

पंचचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-45 का हिन्दी अनुवाद


अनिन्दिते! इसके बाद मैं गोदान का वर्णन करूँगा। प्रिये! इस संसार में गौओं के दान से बढ़कर दूसरा कोई दान नहीं है। पूर्वकाल में लोक सृष्टि की इच्छा वाले स्वयम्भू ब्रह्मा जी ने समस्त प्राणियों की जीवन-वृत्ति के लिये गौओं की सृष्टि की थी। इसलिये वे सबकी माताएँ मानी गयी हैं। गौएँ सम्पूर्ण जगत में ज्येष्ठ हैं। वे लोगों को जीविका देने के कार्य में प्रवृत्त हुई हैं। मेरे अधीन हैं और चन्द्रमा के अमृतमय द्रव से प्रकट हुई हैं। वे सौम्य, पुण्यमयी, कामनाओं की पूर्ति करने वाली तथा प्राणदायिनी हैं। इसलिये पुण्याभिलाषी मनुष्यों के लिये पूजनीय हैं।

जो काँस के दुग्धपात्र और सोने से मढ़े हुए सींगों वाली कपिला गौ का वस्त्रसहित दान करता है, वह अपने पुत्रों, पौत्रों तथा सातवीं पीढ़ी तक के समस्त कुल का परलोक में उद्धार कर देता है। जो अपने ही यहाँ पैदा हुई हों, खरीदकर लायी गयी हों, जुए में जीत ली गयी हों, बदले में दूसरा कोई प्राणी देकर खरीदी गयी हों, जल हाथ में लेकर संकल्पपूर्वक दी गयी हों, अथवा युद्ध में बलपूर्वक जीती गयी हों, संकट से छुड़ाकर लायी गयी हों, या पालन-पोषण के लिये आयी हों- इन द्वारों से प्राप्त हुई गौओं का दान करना चाहिये।

जीविका के बिना दुर्बल, अनेक पुत्र वाले, अग्निहोत्री, श्रोत्रिय ब्राह्मण को दूध देने वाली नीरोग गाय का दान करके दाता सर्वोत्तम लोकों को प्राप्त होता है। जो क्रूर, कृतघ्न, लोभी, असत्यवादी और हव्य-कव्य से दूर रहने वाला हो, ऐसे मनुष्य को किसी तरह गौएँ नहीं देनी चाहिये। जो मनुष्य समान रंग के बछड़े वाली, सीधी-सादी एवं दूध देने वाली गाय को वस्त्र ओढ़ाकर ब्राह्मण को दान करता है, वह सोमलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो समान रंग के बछड़े वाली, सीधी-सादी एवं दूध देने वाली काली गौ को वस्त्र ओढ़ाकर उसका ब्राह्मण को दान करता है, वह जल के स्वामी वरुण के लोकों में जाता है। जिसके शरीर का रंग सुनहरा, आँखें, भूरी, साथ में बछड़ा और काँस की दुहानी हो, उस गौ को वस्त्र ओढ़ाकर दान करने से मनुष्य कुबेर के धाम में जाते हैं। वायु से उड़ी हुई धूलि के समान रंग वाली, बछड़े सहित, दूध देने वाली गाय को कपड़ा ओढ़ाकर काँस के दुहानी के साथ दान देकर दाता वायुलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो समान रंग के बछड़े वाली, सीधी-सादी, धौरी एवं दूध देने वाली धेनु को वस्त्र से आच्छादित करके उसका दान करता है, वह अग्निलोक में प्रतिष्ठित होता है।

जो लोग महामनस्वी श्रोत्रिय ब्राह्मणों को नौजवान, बड़े सींग वाले, बलवान, श्यामवर्ण, एक सौ गौओं सहित यूथपति गवेन्द्र (साँड़) को पूर्णतः अलंकृत करके उसे श्रेष्ठ ब्राह्मण के हाथ में दे देते हैं, वे बारंबार जन्म लेने पर ऐश्वर्य के साथ ही जन्म लेते हैं। गौओं के मल-मूत्र से कभी उद्विग्न नहीं होना चाहिये और उनका मांस कभी नहीं खाना चाहिये। सदा गौओं का भक्त होना चाहिये। जो पवित्र भाव से रहकर एक वर्ष तक दूसरे की गाय को एक मुट्ठी ग्रास खिलाता है और स्वयं आहार नहीं करता, उसका वह व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाला होता है। गौओं के पास प्रतिदिन दोनों समय उनके कल्याण की बात कहनी चाहिये। कभी उनका अनिष्ट-चिन्तन नहीं करना चाहिये। ऐसा धर्मज्ञ पुरुषों का मत है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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