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− | <h4 style="text-align:center">सप्तश (17) अध्याय: विराट पर्व | + | <h4 style="text-align:center">सप्तश (17) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)</h4> |
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− | [[चित्र:Prev.png|link=महाभारत विराट पर्व अध्याय 17 श्लोक 1-19 | + | [[चित्र:Prev.png|link=महाभारत विराट पर्व अध्याय 17 श्लोक 1-19]] |
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+ | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: विराट पर्व: सप्तश अध्यायः श्लोक 20-21 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
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+ | ‘कृष्णे! सब कार्यों के लिये मैं ही तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ। | ||
− | + | मैं ही सब प्रकार की विपत्तियों में बार-बार सहायता करके तुम्हें संकट से मुक्त करता हूँ। अतः जैसी तुम्हारी रुचि हो और जिस कार्य के लिये कुछ कहना चाहती हो, उसे शीघ्र कहकर पहले ही अपने शयन कक्ष में चली जाओ, जिससे दूसरे किसी को इसका पता न चल सके’। | |
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− | मैं ही सब प्रकार की विपत्तियों में बार-बार सहायता करके तुम्हें संकट से मुक्त करता हूँ। अतः जैसी तुम्हारी रुचि हो और जिस कार्य के लिये | + | |
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी-भीम संवाद विषयक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी-भीम संवाद विषयक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
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[[चित्र:Next.png|link=महाभारत विराट पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-9|]] | [[चित्र:Next.png|link=महाभारत विराट पर्व अध्याय 18 श्लोक 1-9|]] |
11:40, 31 मार्च 2018 का अवतरण
सप्तश (17) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)
महाभारत: विराट पर्व: सप्तश अध्यायः श्लोक 20-21 का हिन्दी अनुवाद
मैं ही सब प्रकार की विपत्तियों में बार-बार सहायता करके तुम्हें संकट से मुक्त करता हूँ। अतः जैसी तुम्हारी रुचि हो और जिस कार्य के लिये कुछ कहना चाहती हो, उसे शीघ्र कहकर पहले ही अपने शयन कक्ष में चली जाओ, जिससे दूसरे किसी को इसका पता न चल सके’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी-भीम संवाद विषयक सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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