षोडश (16) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवध पर्व)
महाभारत: विराट पर्व षोडश अध्यायः भाग-2 का हिन्दी अनुवाद
वह धर्मज्ञा और सत्यवादिनी थी। उसके जैसी तेजस्विनी स्त्री अपने केश पकड़ लिये जाने पर असमर्थ की भाँति चुपचाप सह लेगी, यह सम्भव नहीं है। यदि उसने सह लिया, तो इसका कोई छोटा कारण नहीं होगा। साधुशिरोमणे! मैं वह कारण सुनना चाहता हूँ। कृष्णा के क्लेश की बात सुनकर मेरा मन अत्यन्त व्यथित हो रहा है। मुने मत्स्यराज का साला दुष्ट कीचक किसके कुल में उत्पन्न हुआ था ? असैा वह बल से उन्मत्त क्यों हो गया था ? वैशम्पायनजी ने कहा - कुरुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाला 1893 नरेश! तुम्हारा उठाया हुआ यह प्रश्न ठीक है। मैं यह सब विस्तार पूर्वक बताऊँगा। राजन्! क्षत्रिय पिता और ब्राह्मणी माता से उत्पन्न हुआ बालक ‘सूत’ कहलाता है। प्रतिलोमसंकर जातियों में अकेली यह सूत जाति ही द्विज कही गयी है। द्विजोचित कर्मों से युक्त उस सूत को ही रथकार भी कहते हैं। इसे क्षत्रिय से हीन और वैश्य से श्रेष्ठ बताते हैं। राजन्! पहले के नरेशों ने सूतजाति के साथ भी वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया है, परंतु उन्हें राजा की उपाधि नहीं प्राप्त होती थी। उनके लिये सूतों के नाम से सूतराज्य ही नियत कर दिया गया था। वह राज्य सूतजाति के एक पुरुष ने किसी क्षत्रिय राजा की सेवा करके ही प्राप्त किया था। सुप्रसिद्ध केकय नामक राजा सूतों के ही अधिपति थे। उनका जन्म किसी क्षत्रिय कन्या के गर्भ से हुआ था। वे सारथि कर्म में अनुपम थे। कुरुश्रेष्ठ! उनके मालवी के गर्भ के गर्भ से कई पुत्र उत्पन्न हुए। प्रभो! उन पुत्रों में कीचक ही सबसे बड़ा था। राजा केकय की दूसरी रानी भी मालवकन्या ही थी। उसके गर्भ से चित्रा नाम वाली कन्या उत्पन्न हुई, जो समसत कीचकबन्धुओं की छोटी बहिन थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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