द्विसप्तत्यधिकद्विशततम (272) अध्याय: वन पर्व (जयद्रथविमोक्षण पर्व)
महाभारत: वन पर्व: द्विसप्तत्यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 36-54 का हिन्दी अनुवाद
तत्पश्चात् सृष्टिकाल में सत्वगुण के आधिक्य से भगवान् योगनिद्रा से जाग उठे। जागने पर उन्हें यह समस्त लोक सूना दिखायी दिया। महर्षिगण भगवान् नारायण के सम्बन्ध में यहाँ इस श्लोक का उदाहरण दिया करते हैं- 'जल भगवान् का शरीर है, इसीलिये उनका नाम ‘नार’ सुनते आये हैं। वह नार ही उनका अयन (गृह) है अथवा उसके साथ एक होकर वे रहते हैं, इसीलिये उन भगवान् को नारायण कहा गया है।' तत्पश्चात प्रजा की सृष्टि के लिये भगवान् ने चिन्तन किया। इस चिन्तन के साथ ही भगवान् की नाभि से सनातन कमल प्रकट हुआ। उस नाभिकमल से चतुर्मुख ब्रह्माजी का प्रादुर्भाव हुआ। उस कमल पर बैठे हुए लोक पितामह ब्रह्माजी ने सहसा सम्पूर्ण जगत को शून्य देखकर अपने मानस पुत्र के रूप में अपने ही जैसे प्रभावशाली मरीचि आदि नौ महार्षियों को उत्पन्न किया। उन महर्षियों ने स्थावर-जंगमरूप सम्पूर्ण भूतों की तथा यक्ष, राक्षस, भूत पिशाच, नाग और मनुष्यों की सृष्टि की। ब्रह्माजी के रूप से भगवान् सृष्टि करते हैं। परमपुरुष नारायण रूप से इसकी रक्षा करते हैं तथा रुद्र स्वरूप से सब का संहार करते हैं। इस प्रकार प्रजापालक भगवान् की ये तीन अवस्थाएं हैं। सिन्धुराज! क्या तुमने वेदों के पारगंत ब्रह्मर्षियों के मुख से अद्भुतकर्मा भगवान् विष्णु का चरित्र नहीं सुना है? समस्त भूमण्डल सब ओर से जल में डूबा हुआ था। उस समय एकार्णव से उपलक्षित एकमात्र आकाश में पृथ्वी का पता लगाने के लिये भगवान् इस प्रकार विचर रहे थे, जैसे वर्षा काल की रात में जुगनू सब ओर उड़ता फिरता है। वे पृथ्वी को कहीं स्थिर रूप से स्थापित करने के लिये उसकी खोज कर रहे थे। पृथ्वी को जल में डूबी हुई देख भगवान् ने मन-ही-मन उसे बाहर निकालने की इच्छा की। वे सोचने लगे, ‘कौन-सा रूप धारण करके मैं इस जल से पृथ्वी का उद्धार करूँ’। इस प्रकार मन-ही-मन चिन्तन करके उन्होंने दिव्यदृष्टि से देखा कि जल में क्रीड़ा करने के योग्य तो वराह रूप है; अत: उन्होंने उसी रूप का स्मरण किया। वेदतुल्य वैदिक वांङ्म्य वराह रूप धारण करके भगवान ने जल के भीतर प्रवेश किया। उनका वह विशाल पर्वताकार शरीर सौ योजन लम्बा और दस योजन चौड़ा था। उनकी दाढ़ें बड़ी तीखी थीं। उनका शरीर देदीप्यमान हो रहा था। भगवान् का कण्ठस्वर महान् मेघों की गर्जना के समान गम्भीर था। उनकी अंगकान्ति नील जलधर के समान श्याम थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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