"महाभारत वन पर्व अध्याय 170 श्लोक 24-29" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्‍याय:  श्लोक 24-29 का हिन्दी अनुवाद</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्‍याय:  श्लोक 24-29 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
तदनन्तर उन दानवोंके भी बाण मेरे उपर जोर-जोर से गिरने लगे। मातलिने उनकी उस बाण-वर्षाकी भी सराहना की। फिर मैंने अपने बाणोंद्वारा शत्रुओंके उन सब बाणोंको छिन्न-भिन्न कर डाला।
 
  
इस प्रकार मार खाते और मरते रहनेपर भी निवातकवचोंने पुनः भारी बाण-वर्षाके द्वारा मुझे सब ओरसे घेर लिया। तब मैंने अस्त्र-विनाशक अस्त्रोंद्वारा उनकी बाण-वर्षाके वेगको शान्त करके अत्यन्त शीघ्रगामी एवं प्रज्वलित बाणद्वारा सहस्रों दैत्योंको घायल कर दिया। उनके कटे हुए अंग उसी प्रकार रक्तकी धारा बहाते थे, जैसे वर्षा-ऋतुमें वृष्टिके जलसे भागे हुए पर्वतोंके शिखर ( गेरू आदि धातुओंसे मिश्रित) जलकी धारा बहाते हैं।
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तदनन्तर उन दानवों के भी बाण मेरे ऊपर जोर-जोर से गिरने लगे। [[मातलि]] ने उनकी उस बाण-वर्षा की भी सराहना की। फिर मैंने अपने बाणों द्वारा शत्रुओं के उन सब बाणों को छिन्न-भिन्न कर डाला।
  
मेरे बाणोंका स्पर्श इन्द्रके वज्रके समान था। वे बड़े वेगसे छूटते और सीधे जाकर शत्रुको अपना निशाना बनाते थे। उनकी चोट खाकर वे समस्त दानव भयसे व्याकूल हो उठे। उन दैत्योंके शरीरके सौ-सौ टुकड़े हो गये थे। उनके अस्त्र-शस्त्र कट गये और उत्साह नष्ट हो गया था। ऐसी अवस्थामें निवातकवचोंने मेरे साथ माया युद्ध आरम्भ कर दिया।  
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इस प्रकार मार खाते और मरते रहने पर भी [[निवातकवच|निवातकवचों]] ने पुनः भारी बाण-वर्षा के द्वारा मुझे सब ओर से घेर लिया। तब मैंने अस्त्र-विनाशक अस्त्रों द्वारा उनकी बाण-वर्षा के वेग को शान्त करके अत्यन्त शीघ्रगामी एवं प्रज्वलित बाण द्वारा सहस्रों दैत्यों को घायल कर दिया। उनके कटे हुए अंग उसी प्रकार रक्त की धारा बहाते थे, जैसे वर्षा-ऋतु में वृष्टि के जल से भीगे हुए पर्वतों के शिखर (गेरू आदि धातुओं से मिश्रित) जल की धारा बहाते हैं।
  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत निवातकवचयुद्धपर्वमें एक सौ सतरवां अध्याय पूरा हुआ।</div>
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मेरे बाणों का स्पर्श [[इन्द्र]] के [[वज्र अस्त्र|वज्र]] के समान था। वे बड़े वेग से छूटते और सीधे जाकर शत्रु को अपना निशाना बनाते थे। उनकी चोट खाकर वे समस्त दानव भय से व्याकुल हो उठे। उन दैत्यों के शरीर के सौ-सौ टुकड़े हो गये थे। उनके अस्त्र-शस्त्र कट गये और उत्साह नष्ट हो गया था। ऐसी अवस्था में निवातकवचों ने मेरे साथ माया युद्ध आरम्भ कर दिया।
  
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13:52, 20 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

सप्तत्यधिकशततम (170) अध्‍याय: वन पर्व (निवातकवचयुद्ध पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्तत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 24-29 का हिन्दी अनुवाद


तदनन्तर उन दानवों के भी बाण मेरे ऊपर जोर-जोर से गिरने लगे। मातलि ने उनकी उस बाण-वर्षा की भी सराहना की। फिर मैंने अपने बाणों द्वारा शत्रुओं के उन सब बाणों को छिन्न-भिन्न कर डाला।

इस प्रकार मार खाते और मरते रहने पर भी निवातकवचों ने पुनः भारी बाण-वर्षा के द्वारा मुझे सब ओर से घेर लिया। तब मैंने अस्त्र-विनाशक अस्त्रों द्वारा उनकी बाण-वर्षा के वेग को शान्त करके अत्यन्त शीघ्रगामी एवं प्रज्वलित बाण द्वारा सहस्रों दैत्यों को घायल कर दिया। उनके कटे हुए अंग उसी प्रकार रक्त की धारा बहाते थे, जैसे वर्षा-ऋतु में वृष्टि के जल से भीगे हुए पर्वतों के शिखर (गेरू आदि धातुओं से मिश्रित) जल की धारा बहाते हैं।

मेरे बाणों का स्पर्श इन्द्र के वज्र के समान था। वे बड़े वेग से छूटते और सीधे जाकर शत्रु को अपना निशाना बनाते थे। उनकी चोट खाकर वे समस्त दानव भय से व्याकुल हो उठे। उन दैत्यों के शरीर के सौ-सौ टुकड़े हो गये थे। उनके अस्त्र-शस्त्र कट गये और उत्साह नष्ट हो गया था। ऐसी अवस्था में निवातकवचों ने मेरे साथ माया युद्ध आरम्भ कर दिया।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत निवातकवचयुद्धपर्व में एक सौ सत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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