- यस्मिन् करोति विश्वासमिच्छतस्तस्य जीवति।[1]
ऋजु जिस पर विश्वास करता है उसकी इच्छा है तब तक ही जीवित है।
- विश्वसितव्यं च शांकितव्यं च केषुचित्।[2]
किसी पर विश्वास करना चाहिये और किसी पर शंका।
- संक्षेपो नीतिशास्त्राणामविश्वास: परो मत:।[3]
संक्षेप में नीतिशास्त्रों का सार है किसी पर विश्वास न करना।
- वध्यन्ते न ह्यविश्वास्ता: शत्रुभिर्दुर्बला अपि।[4]
विश्वास न करने से दुर्बल भी बलवानों के हाथों नहीं मारे जाते।
- सांत्वे प्रयुक्ते सततं कृतावैरे न विश्वसेत्।[5]
जिसने कभी वैर किया हो उसके मधुर वचनों का विश्वास न करें।
- एकांततो न विश्वास: कार्यो विश्वासघातकै:।[6]
विश्वासघातियों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करना चाहिये।
- सर्वेषां कृतवैराणामविश्वास: सुखोदय।[7]
वैर रखने वालों के लिये आपस में विश्वास न करना सुखदायी है।
- निश्चय: स्वार्थशास्त्रेषु विश्वासश्चासुखोदय:।[8]
स्वार्थशास्त्रों का निश्चय है कि विश्वास करने से दु:ख ही मिलता है।
- विश्वस्तेषु हि भूतेषु कल्पते सर्वमेव हि।[9]
सभी प्राणी विश्वास करने लगते हैं तो सारे काम बन जाते हैं।
- अविस्त्रम्भे न गंतव्यं विस्त्रम्भे धारयेन्मन:।[10]
विश्वास करने योग्य मार्ग में मन लगायें विश्वास के अयोग्य में नहीं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 80.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 80.12
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 138.196
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 138.197
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 139.26
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 139.28
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 139.28
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 139.70
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 167.26
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 189.16
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