विश्वास (महाभारत संदर्भ) 2

  • यस्मिन् करोति विश्वासमिच्छतस्तस्य जीवति।[1]

ऋजु जिस पर विश्वास करता है उसकी इच्छा है तब तक ही जीवित है।

  • विश्वसितव्यं च शांकितव्यं च केषुचित्।[2]

किसी पर विश्वास करना चाहिये और किसी पर शंका।

  • संक्षेपो नीतिशास्त्राणामविश्वास: परो मत:।[3]

संक्षेप में नीतिशास्त्रों का सार है किसी पर विश्वास न करना।

  • वध्यन्ते न ह्यविश्वास्ता: शत्रुभिर्दुर्बला अपि।[4]

विश्वास न करने से दुर्बल भी बलवानों के हाथों नहीं मारे जाते।

  • सांत्वे प्रयुक्ते सततं कृतावैरे न विश्वसेत्।[5]

जिसने कभी वैर किया हो उसके मधुर वचनों का विश्वास न करें।

  • एकांततो न विश्वास: कार्यो विश्वासघातकै:।[6]

विश्वासघातियों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करना चाहिये।

  • सर्वेषां कृतवैराणामविश्वास: सुखोदय।[7]

वैर रखने वालों के लिये आपस में विश्वास न करना सुखदायी है।

  • निश्चय: स्वार्थशास्त्रेषु विश्वासश्चासुखोदय:।[8]

स्वार्थशास्त्रों का निश्चय है कि विश्वास करने से दु:ख ही मिलता है।

  • विश्वस्तेषु हि भूतेषु कल्पते सर्वमेव हि।[9]

सभी प्राणी विश्वास करने लगते हैं तो सारे काम बन जाते हैं।

  • अविस्त्रम्भे न गंतव्यं विस्त्रम्भे धारयेन्मन:।[10]

विश्वास करने योग्य मार्ग में मन लगायें विश्वास के अयोग्य में नहीं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 80.11
  2. शांतिपर्व महाभारत 80.12
  3. शांतिपर्व महाभारत 138.196
  4. शांतिपर्व महाभारत 138.197
  5. शांतिपर्व महाभारत 139.26
  6. शांतिपर्व महाभारत 139.28
  7. शांतिपर्व महाभारत 139.28
  8. शांतिपर्व महाभारत 139.70
  9. शांतिपर्व महाभारत 167.26
  10. शांतिपर्व महाभारत 189.16

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