द्वाविशत्यधिकशततम (122) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: द्वाविशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
‘कहां गया तुम्हारा वह दर्प और अभिमान कहाँ है तुम्हारा पराक्रम और कहाँ गयी तुम्हारी गर्जना विषैले सर्पों के समान कुन्तीकुमारों को कुपित कहाँ भागे जा रहे हो। ‘यह कौरव सेना, यह राज्य और इसका राजा दुर्योधन - ये सभी शोचनीय हो गये हैं; क्योंकि तुम राजा के क्रूरकर्मी भाई होकर आज युद्ध में पीठ दिखाकर भाग रहे हो। ‘वीर! तुम्हें जो अपने बाहुबल का आश्रय लेकर इस भागती हुई भयभीत सेना की रक्षा करनी चाहिये। ‘परंतु तुम आज युद्ध छोड़कर भयभीत हो उठे और शत्रुओं का हर्ष बढ़ा रहे हो। शत्रुसूदन! तुम जो सेनापति हो। तुम्हारे भागने पर दूसरा कौन युद्धभूमि में ठहर सकेगा? अब आश्रयदाता या रक्षक ही डर जाय, तब दूसरा क्यों न भयभीत होगा। ‘कौरव! अकेले सात्यकि के साथ युद्ध करते समय; जब आज तुम्हारी बुद्धि संग्राम से पलायन करने में प्रवृत्त हो गयी, तुमने भागने का विचार कर लिया, तब जिस समय तुम गाण्डीवधारी अर्जुन, भीमसेन अथवा नकुल-सहदेव को युद्धस्थल में देखोगे, उस समय तुम क्या करोगे ? ‘रणक्षेत्र मे अर्जुन के बाण सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी हैं। उनके समान सात्यकि के बाण नहीं हैं, जिनसे भयभीत होकर तुम भागे जा रहे हो। ‘वीर! जल्दी जाओ। अपनी माता गान्धारी देवी के पेट में घुस जाओ; अन्यथा इस भूतल पर दूसरा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहाँ भाग जाने से मुझे तुम्हारे जीवन की रक्षा दिखायी देती हो। ‘यदि तुमने भागने का ही विचार की लिया है, तब यह पृथ्वी का राज्य शान्तिपूर्वक ही धर्मराज युधिष्ठिर को सौंप दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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