- संयोगो प्रीतिकरो महत्सु प्रतिदृश्यते।[1]
महापुरुषों के साथ समागम रुचिकर होता है ऐसा देखा जाता है।
- प्रच्छन्ना हि महात्मानश्चरन्ति पृथिवीमिमाम्।[2]
इस पृथ्वी पर गुप्त रूप धारण करके महात्मा विचरण कर रहे हैं।
- अवजानन् महात्मानं घोरे तमसि मज्जति।[3]
महात्मा का अपमान करने वाला घोर अंधकार में डूब जाता है।
- महात्मनोऽतिगुह्मानि न वक्तयानि कर्हिचित्।[4]
महान् पुरुषों के अति गुप्त रहस्य कभी प्रकट नहीं करने चाहियें।
- महात्मनां च चरितं श्रोतव्यं नित्मेव।[5]
नित्य महान् पुरुषों का चरित्र सुनना चाहिये।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 169.56
- ↑ वनपर्व महाभारत 71.31
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 66.22
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.115
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 104.149
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