सौभरि नामक एक ऋषि का उल्लेख भागवत पुराण में हुआ है। भागवत पुराण के अनुसार यह एक बहुत बड़े तपस्वी थे।
- एक बार इनमें मीनराज (मछली) का गार्हस्थ-सुख देखकर भोग-लालसा जागी और तपोवल से अपना बुढ़ापा दूर कर एक सुंदर युवक हो गये।
- मांधाता की 50 पुत्रियों के साथ सौभरि का विवाह हुआ था, जिनके गर्भ से 5000 पुत्र उत्पन्न हुए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 540 |
- ↑ भागवत पुराण 9.6.39-44,49-50
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