सहायक (महाभारत संदर्भ)

  • यस्याविभक्तं वसु राजन् सहायैस्तस्य दु:खेऽप्यंशभाज: सहाया:।[1]

जो धन को सहायकों को बाँट देता है सहायक उसका दु:ख बाँट लेते हैं।

  • सहायाप्तौ प्रथिवीप्राप्तिमाहु:।[2]

सहायको की प्राप्ति प्रथ्वी की ही प्राप्ति मानी जाती है।

  • ये नाथवंतोऽद्य भवंति लोके ते नात्मना कर्म समारभन्ते।[3]

जिनके बहुत से सहायक हैं उसके सब कार्य सभी प्रकार से पूर्ण हो जाते हैं।

  • सहायवति सर्वार्था: संतिष्ठंतीह सर्वश:।[4]

जिसके पास सहायक है उसके सब कार्य सभी प्रकार से पूर्ण हो जाते हैं।

  • सहायसाध्यानि हि दुष्कराणि।[5]

सहायकों द्वारा कठिन कार्य भी सम्पन्न हो जाते हैं।

  • सहायाँल्लिप्सेथा: सर्वास्वापत्सु।[6]

आपत्ति के काल के लिये सहायक बनाने की इच्छा करो।

  • एक एव चरेद् धर्म सिद्ध्ययर्थमसहायवान्।[7]

बिना किसी सहायक के अकेला ही धर्म का पालन करे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 5.20
  2. वनपर्व महाभारत 5.20
  3. वनपर्व महाभारत 120.2
  4. वनपर्व महाभारत 292.5
  5. उद्योगपर्व महाभारत 37.24
  6. शांतिपर्व महाभारत 83.4
  7. शांतिपर्व महाभारत 245.4

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