आशीष (महाभारत संदर्भ)

  • भूयो भूयश्च ते बुद्धिर्धर्मे भवतु सुस्थिरा।[1]

तुम्हारी बुद्धि उत्तोत्तर धर्म में स्थिर रहे।

  • अपत्यं गुणसम्पन्नं लब्धा प्रीतिकारं ह्यसि।[2]

तुम गुणवान् और प्रिय संतान प्राप्त करोगे।

  • अगदं वोऽस्तु सर्वश:।[3]

तुम सब प्रकार से निरोग रहों।

  • भव एधस्व मोदस्व।[4]

बने रहो, बढते रहो और आनंद में रहो।

  • अविघ्नमस्तु कार्याय।[5]

आप के कार्य में कोई विघ्न न हो।

  • न त्वां तपेत् कालविपर्यय:।[6]

समय की प्रतिकूलता तुम्हें दु:खी न करे।

  • लभतां कामं यथाभिलषितम्।[7]

आप की अभिलाषा पूर्ण हो।

  • कीर्तिरस्तु तवाक्ष्य्या जीव वर्षशतं सुखी।[8]

सौ वर्ष तक सुख से जीवित रहो, तुम्हारी अनंत कीर्ति बनी रहे।

  • सर्वस्तुरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।[9]

सभी दुर्गम संकट से पार हों, सभी का कल्याण हो।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 36.16
  2. आदिपर्व महाभारत 119.26
  3. सभापर्व महाभारत 8.6
  4. सभापर्व महाभारत 12.32
  5. सभापर्व महाभारत 31.20
  6. सभापर्व महाभारत 77.12
  7. वनपर्व महाभारत 296.28
  8. वनपर्व महाभारत 78.28
  9. शांतिपर्व महाभारत 327.48

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