पीड़ित (महाभारत संदर्भ)

पीड़ित = दु:खी

  • नोद्विग्नश्चरते धर्म नोद्विग्नश्चरते क्रियाम्।[1]

ऋजु दु:खी हो तो न धर्म ही कर पाता है न यज्ञ आदि क्रिया ही।

  • उद्विग्नस्य कुत:शांतिरशांतस्य कुत:सुखम्।[2]

मन में कष्ट हो तो शांति कहाँ, और अशांति में सुख कहाँ?

  • पीड़ितस्य किमद्वारमुत्पथो विधृतस्य च्।[3]

पीड़ित और नियंत्रित (कैदी) के लिये क्या द्वार और क्या कुमार्गं

  • अद्वारत: प्रद्रवति यदा भवति पीड़ित:।[4]

मनुष्य पीड़ित होता है तो बिना द्वार के ही भाग जाता है।

  • लोकमातुरमसूयते जन:।[5]

दु:खी को देख लोग उसकी निंदा करते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 41.28
  2. वनपर्व महाभारत 233.13
  3. शांतिपर्व महाभारत 130.22
  4. शांतिपर्व महाभारत 130.22
  5. शांतिपर्व महाभारत 194.62

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