- सज्जन्माक्रश्च मूर्खो भवति निवृर्त:।[1]
सज्जनों को कोस कर मूर्ख संतोष अनुभव करते हैं।
- मूर्खा दोषानुदर्शिन:।[2]
मूर्ख औरों के दोष ही देखा करते हैं।
- कृच्छ्रमनुप्राप्तं विचेता नावबुध्यते।[3]
मूर्ख नहीं जानता कि संकट आने वाला है।
- भूतं हित्वा च भाव्यार्थे योवलम्बेत् स मंदधी:।[4]
प्राप्त को छोड़ करके भविष्य की वस्तु पर निर्भर रहने वाला मूर्ख है।
- न श्रेयसे नीयते मंदबुद्धि:।[5]
मूर्ख को कल्याण के मार्ग पर नहीं लगाया जा सकता।
- शास्त्रं न शास्ती दुर्बुद्धिं श्रेयसे चेतराय च।[6]
मूर्ख को शास्त्र भी उचित-अनुचित नहीं सिखा सकता है।
- बहुनापि ह्मविद्वांसो नैव तुष्यंत्यल्पबुद्धय:।[7]
बुद्धिहीन अज्ञानी बहुत पाकर भी संतुष्ट नहीं होते।
- मूर्खान् सर्वत्र वर्जयेत्।[8]
मूर्खों को सभी कार्यों से दूर रखना चाहिये।
- न लोके राजते मूर्ख: केवलात्मप्रशंसया।[9]
मूर्ख केवल अपनी प्रशंसा के बल पर संसार में प्रतिष्ठा नहीं पा सकता।
- जितमर्थं विजानीयादबुधो माद्रवे सति।[10]
ऋजु कोमल व्यवहार करे तो मूर्ख व्यक्ति उसे पराजित हुआ मानता है।
- ब्राह्मी सुदुर्लभा श्रीर्हि प्रजाहीनेन।[11]
प्रज्ञाहीन मनुष्य के लिये ब्रह्मज्ञानरूपी श्री का मिलना अति दुर्लभ है।
- धर्म च लोकं च त्यक्त्वा चरति दुर्मति:।[12]
मूर्ख धर्म और समाज को छोड़कर चलता है। (किसी की नहीं मानता)
- मूर्खानिति परानाह नात्मानं समवेक्षते।[13]
ऋजु दूसरों को मूर्ख बताता है अपनी ओर नहीं देखता।
- न चाबुद्धिषु विश्वसेत्।[14]
मूर्खों पर कभी विश्वास न करें
- किमाश्चर्यं अदप्रज्ञो बहु कुर्यादसाम्प्रतम्।[15]
अज्ञानी मनुष्य यदि अनुचित कार्य करे तो इसमें आश्चर्य नहीं।
- श्रिया ह्मभीक्ष्णं संवासो मोहयत्यविचक्षणम्।[16]
लक्ष्मी निरंतर पास रहे तो मूर्ख को मोह हो जाता है।
- अबुधास्तं न पश्यति ह्मात्मस्थम्।[17]
अज्ञानीजन अपने अंदर स्थित परमत्मा को नहीं देख पाते।
- स्पर्शरूपरसाद्येषु संग गच्छति बालिशा:।[18]
स्पर्श, रूप और रस आदि विषयों तें अज्ञानी आसक्त होते हैं।
- अधर्म धर्मकायो हि करोति ह्मविचक्षण:।[19]
मूर्ख धर्म करना चाहता है परंतु (न जानने के कारण) अधर्म करता है।
- नाबुधास्तारयंत्यन्यानात्मनं वा कथंचन।[20]
मूर्ख अपना ही उद्धार नहीं कर सकते औरों का क्या करेंगे?
- अबुद्धसेवानाच्चाति बुद्धोप्यबुद्धतां ब्रजेत्।[21]
मूर्ख के संग से बुद्धिमान् भी मूर्ख बन जाता है।
- सहस्रेणापि दुर्मेधा न बुद्धिमधिगच्छति।[22]
मूढ़ को हजार उपाय करने पर भी ज्ञान नहीं होता।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 74.93
- ↑ आदिपर्व महाभारत 74.94
- ↑ आदिपर्व महाभारत 231.2
- ↑ आदिपर्व महाभारत 232.15
- ↑ सभापर्व महाभारत 64.14
- ↑ सभापर्व महाभारत 75.7
- ↑ वनपर्व महाभारत 31.34
- ↑ वनपर्व महाभारत 150.45
- ↑ वनपर्व महाभारत 207.49
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 4.6
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 42.45
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 79.6
- ↑ स्त्रीपर्व महाभारत 4.14
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 120.36
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 151.10
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 176.16
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 206.9
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 212.10
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 235.31
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 236.2
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 304.10
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 50.17
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