मूर्ख (महाभारत संदर्भ)

  • सज्जन्माक्रश्च मूर्खो भवति निवृर्त:।[1]

सज्जनों को कोस कर मूर्ख संतोष अनुभव करते हैं।

  • मूर्खा दोषानुदर्शिन:।[2]

मूर्ख औरों के दोष ही देखा करते हैं।

  • कृच्छ्रमनुप्राप्तं विचेता नावबुध्यते।[3]

मूर्ख नहीं जानता कि संकट आने वाला है।

  • भूतं हित्वा च भाव्यार्थे योवलम्बेत् स मंदधी:।[4]

प्राप्त को छोड़ करके भविष्य की वस्तु पर निर्भर रहने वाला मूर्ख है।

  • न श्रेयसे नीयते मंदबुद्धि:।[5]

मूर्ख को कल्याण के मार्ग पर नहीं लगाया जा सकता।

  • शास्त्रं न शास्ती दुर्बुद्धिं श्रेयसे चेतराय च।[6]

मूर्ख को शास्त्र भी उचित-अनुचित नहीं सिखा सकता है।

  • बहुनापि ह्मविद्वांसो नैव तुष्यंत्यल्पबुद्धय:।[7]

बुद्धिहीन अज्ञानी बहुत पाकर भी संतुष्ट नहीं होते।

  • मूर्खान् सर्वत्र वर्जयेत्।[8]

मूर्खों को सभी कार्यों से दूर रखना चाहिये।

  • न लोके राजते मूर्ख: केवलात्मप्रशंसया।[9]

मूर्ख केवल अपनी प्रशंसा के बल पर संसार में प्रतिष्ठा नहीं पा सकता।

  • जितमर्थं विजानीयादबुधो माद्रवे सति।[10]

ऋजु कोमल व्यवहार करे तो मूर्ख व्यक्ति उसे पराजित हुआ मानता है।

  • ब्राह्मी सुदुर्लभा श्रीर्हि प्रजाहीनेन।[11]

प्रज्ञाहीन मनुष्य के लिये ब्रह्मज्ञानरूपी श्री का मिलना अति दुर्लभ है।

  • धर्म च लोकं च त्यक्त्वा चरति दुर्मति:।[12]

मूर्ख धर्म और समाज को छोड़कर चलता है। (किसी की नहीं मानता)

  • मूर्खानिति परानाह नात्मानं समवेक्षते।[13]

ऋजु दूसरों को मूर्ख बताता है अपनी ओर नहीं देखता।

  • न चाबुद्धिषु विश्वसेत्।[14]

मूर्खों पर कभी विश्वास न करें

  • किमाश्चर्यं अदप्रज्ञो बहु कुर्यादसाम्प्रतम्।[15]

अज्ञानी मनुष्य यदि अनुचित कार्य करे तो इसमें आश्चर्य नहीं।

  • श्रिया ह्मभीक्ष्णं संवासो मोहयत्यविचक्षणम्।[16]

लक्ष्मी निरंतर पास रहे तो मूर्ख को मोह हो जाता है।

  • अबुधास्तं न पश्यति ह्मात्मस्थम्।[17]

अज्ञानीजन अपने अंदर स्थित परमत्मा को नहीं देख पाते।

  • स्पर्शरूपरसाद्येषु संग गच्छति बालिशा:।[18]

स्पर्श, रूप और रस आदि विषयों तें अज्ञानी आसक्त होते हैं।

  • अधर्म धर्मकायो हि करोति ह्मविचक्षण:।[19]

मूर्ख धर्म करना चाहता है परंतु (न जानने के कारण) अधर्म करता है।

  • नाबुधास्तारयंत्यन्यानात्मनं वा कथंचन।[20]

मूर्ख अपना ही उद्धार नहीं कर सकते औरों का क्या करेंगे?

  • अबुद्धसेवानाच्चाति बुद्धोप्यबुद्धतां ब्रजेत्।[21]

मूर्ख के संग से बुद्धिमान् भी मूर्ख बन जाता है।

  • सहस्रेणापि दुर्मेधा न बुद्धिमधिगच्छति।[22]

मूढ़ को हजार उपाय करने पर भी ज्ञान नहीं होता।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 74.93
  2. आदिपर्व महाभारत 74.94
  3. आदिपर्व महाभारत 231.2
  4. आदिपर्व महाभारत 232.15
  5. सभापर्व महाभारत 64.14
  6. सभापर्व महाभारत 75.7
  7. वनपर्व महाभारत 31.34
  8. वनपर्व महाभारत 150.45
  9. वनपर्व महाभारत 207.49
  10. उद्योगपर्व महाभारत 4.6
  11. उद्योगपर्व महाभारत 42.45
  12. उद्योगपर्व महाभारत 79.6
  13. स्त्रीपर्व महाभारत 4.14
  14. शांतिपर्व महाभारत 120.36
  15. शांतिपर्व महाभारत 151.10
  16. शांतिपर्व महाभारत 176.16
  17. शांतिपर्व महाभारत 206.9
  18. शांतिपर्व महाभारत 212.10
  19. शांतिपर्व महाभारत 235.31
  20. शांतिपर्व महाभारत 236.2
  21. शांतिपर्व महाभारत 304.10
  22. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 50.17

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