किसे दान न देंं (महाभारत संदर्भ)

  • को गुणो भरतश्रेष्ठ सम्रद्धेष्वभिवर्जितम्।[1]

भरतश्रेष्ठ! धनवानों को दान देने से क्या लाभ?

  • पापेभ्यो हि धनं दत्तं दातारमपि पीडयेत्।[2]

पापियों को धन देने से दाता को भी कष्ट मिलता है।

  • स्वधर्मादतेपेभ्य: प्रयच्छान्त्यल्पबुद्धय:।[3]

मन्दबुद्धि मनुष्य धर्महीन लोगों को धन देते हैं।

  • न दद्याद् यशसे दानं न भयात्।[4]

यश और भय के कारण दान न दें।

  • न वै देयमनुक्रोशाद् दीनायप्यपकारिणे।[5]

औरों का अहित करने वाला यदि दीन हो तो दयावश भी दान न दें।

  • विसृजेन्न च लुब्धेभ्य:।[6]

लोभियों को धन न दे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 200.28
  2. कर्णपर्व महाभारत 69.65
  3. शांतिपर्व महाभारत 26.29
  4. शांतिपर्व महाभारत 36.36
  5. शांतिपर्व महाभारत 36.44
  6. शांतिपर्व महाभारत 70.7

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