मित्रद्रोह (महाभारत संदर्भ)

  • मित्रद्रोहे तात महानधर्म:।[1]

तात! मित्र से द्रोह करना महापाप है।

  • मित्रेषु यश्च विषम: स्तेन इत्येव तं विदु:।[2]

जो मित्रों के साथ अनुचित व्यवहार करता है उसे चोर कहते है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 54.10
  2. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 58.12

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