संकट (महाभारत संदर्भ)

  • विषमां च दशां प्राप्तो देवान् गर्हति वै भृशम्। [1]

संकट की अवस्था में पड़कर ऋजु देवताओं की अति निंदा करता है।

  • विषयमस्थस्य साहाय्यं कर्तुमर्हसि। [2]

संकट में पड़े हुये की सहायता करता चाहिये।

  • ब्रूयाच्चार्थं ह्यर्थकृच्छ्रेषु धीर:। [3]

धैर्यवान् मनुष्य संकट के समय हितकर उपदेश देता है।

  • दुर्मरं तदहं मन्ये नृणां कृच्छ्रेऽपि वर्तताम्। [4]

मनुष्य कितने ही कष्ट में क्यों ना हो उसके लिये मरना कठिन है।

  • सर्वो विमृशते जन्तु: कृच्छस्थो धर्मदर्शनम्। [5]

संकट में पड़ने पर सभी धर्म की बातें करने लगते हैं।

  • येषामात्मसमो लोको दुर्गाण्यतितरन्ति ते। [6]

जो सारे संसार को अपने समान देखते हैं वे संकट से पार हो जाते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 209.6
  2. वनपर्व महाभारत 60.13
  3. उद्योगपर्व महाभारत 10.24
  4. कर्णपर्व महाभारत 1.21
  5. शल्यपर्व महाभारत 32.59
  6. शान्तिपर्व महाभारत 110.16

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः