- दीनतो बालश्चैव स्नेहं कुर्वंति मानवा:।[1]
दीन और बालक पर मनुष्य अधिक स्नेह करते हैं।
- न बाल इत्यवमंतव्यम्।[2]
छोटा बच्चा जानकर उसका अपमान न करें।
- प्रवारणं तु बालानां पूर्व कार्यमिति श्रुति:।[3]
बालकों की इच्छा पहले पूरी करनी चाहिये ऐसी श्रुति है।
- न बालै: समतामियात्।[4]
बच्चों जैसी बातें मत करो।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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