- सत्यं संगतमस्तु ते।[1]
सत्य आपका जीवन साथी हो।
- स्थातव्यं तु त्वया सत्ये।[2]
तुम्हें सत्य पर स्थिर रहना चाहिये।
- जयेत् कदर्यं दानेन सत्येनानृतवादिनम्।[3]
नीच व्यक्ति को दान से, असत्यवादी को सत्य से जीतो।
- सत्ये कुरु स्थिरं भावम्।[4]
सत्य में अपने मन को स्थिर करें।
- सत्यां वाचमहिंस्त्रां च वदेदनपवादीनम्।[5]
ऐसा सत्य बोलें, जिससे किसी की निंदा न हो, किसी को पीडा न हो।
- ईदृगल्पं च वक्तव्यमाविक्षिप्तेन चेतसा।[6]
स्थिरचित से बोलना चाहिये तथा अल्प मात्रा में बोलना चाहिये।
- सत्ये तिष्ठ रतो धर्मे हित्वा सर्वमनार्जवम्।[7]
सत्य में स्थित हो सब प्रकार की कुटिलता छोड़ धर्म में लगे रहो।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 74.106
- ↑ आदिपर्व महाभारत 154.16
- ↑ वनपर्व महाभारत 194.6
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 190.71
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 215.10
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 215.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 321.5
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