दु:ख (महाभारत संदर्भ)

  • आत्मदोषैर्नियच्छंति सर्वे दु:खसुखे जना:।[1]

सभी लोग अपने कर्मो से ही दु:ख-सुख पाते हैंं।

  • जीविते वर्तमानस्य दु:खानामागमो ध्रुव:।[2]

जीवन है तो दु:ख तो आयेंगे ही।

  • मानसेन हि दु:खेन शरीरमुपतप्यते।[3]

मन में दु:ख होने पर शरीर भी दु:खी हो जाता है।

  • प्रज्ञया मानसं दु:खं हन्याच्छारीरमौषधै:।[4]

शारीरिक कष्ट को औषधि से और मानसिक कष्ट को बुद्धि से दूर करें।

  • न च कर्मस्वसिद्धेषु दु:खं तेन च न ग्लपेत्।[5]

जो कर्म सफल न हो तो उसके लिये दु:ख और ग्यानि न करे।

  • न नूनं पर दु:खेन म्रियते कोऽपि।[6]

निश्चय हि दूसरे के दु:ख से कोई भी नहीं मरता है।

  • भैषज्यमेतद् दु:खस्य यतेतन्नानुचिंतयेद्।[7]

दु:ख की औषधि यही है कि उसका चिंतन ही न करें।

  • तृष्णार्तिप्रभवं दु:खम्।[8]

तृष्णा की जो पीड़ा होती है उससे दु:ख उत्पन्न होता है।

  • दु:खमेवास्ति न सुखं तस्मात् तदुपलभ्यते।[9]

संसार में केवल दु:ख ही है सुख नहीं, इसलिये दु:ख ही मिलता है।

  • न नित्यं लभते दु:खं न नित्यं लभते सुखम्।[10]

न सदा सुख मिलता है और न सदा दु:ख ही मिलता है।

  • दु:खानां हि क्षयो नास्ति जायते ह्मपरत् परम्।[11]

दु:खों का अंत नहीं है एक दु:ख से दूसरा उत्पन्न होता रहता है।

  • मानसानां पुनर्योनिद्रु:खानां चित्तविभ्रम:।[12]

मानसिक दु:खों का कारण है चित्त का भ्रम।

  • मानसादापि दु:खाद्धि शारीरं बलवत्तरम्।[13]

मानसिक दु:ख से शारीरिक दु:ख अधिक बलवान् (असहनीय) होता है।

  • दु:खादुद्विजिते सर्व:।[14]

दु:ख से सभी डरते हैं।

  • दु:खं चानिष्टसंवासो दु:खमिष्टवियोजनम्।[15]

अप्रिय लोगों के साथ रहना दु:ख है, प्रिय लोगों से दूर रहना दु:ख है

  • सुखात् सन्यायते दु:खं दु:खमेव पुन: पुन:।[16]

सुख से दु:ख उत्पन्न होता है फिर और दु:ख तथा फिर और दु:ख।

  • न जानपदिकं दु:खमेक: शोचितुमर्हति।[17]

सारे देश के दुख के लिये अकेला ऋजु शोक न करे।

  • द्वेष्यं दु:खमिहेष्यते।[18]

जो मन के प्रतिकूल है उसे दु:ख कहते हैं

  • दु:खं सपत्नेषु समृद्धिभाव:।[19]

शत्रु की समृद्धि को देख कर दु:ख होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 78.30
  2. आदिपर्व महाभारत 156.21
  3. वनपर्व महाभारत 2.25
  4. वनपर्व महाभारत 216.17
  5. उद्योगपर्व महाभारत 43.31
  6. द्रोणपर्व महाभारत 9.9
  7. स्त्रीपर्व महाभारत 2.27
  8. शांतिपर्व महाभारत 25.22
  9. शांतिपर्व महाभारत 25.22
  10. शांतिपर्व महाभारत 25.23
  11. शांतिपर्व महाभारत 25.30
  12. शांतिपर्व महाभारत 28.12
  13. शांतिपर्व महाभारत 50.14
  14. शांतिपर्व महाभारत 139.62
  15. शांतिपर्व महाभारत 139.63
  16. शांतिपर्व महाभारत 174.18
  17. शांतिपर्व महाभारत 205.5
  18. शांतिपर्व महाभारत 259.27
  19. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 9.6

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