- लोकरञ्जनमेवात्र राज्ञां धर्म: सनातन:।[1]
प्रजा को प्रसन्न करना राजा का सनातन धर्म है।
- नास्य कृत्यतमं किंचिदन्यद् दस्युनिबर्हणात्।[2]
राजा के लिये डाकुओं को मारने से अच्छा कोई कार्य नहीं है।
- निहंति बलिन दृप्तं स राज्ञो धर्म उच्यते।[3]
बलवान् अभिमानी दुष्ट को मारना राजधर्म कहलाता है।
- पुत्रस्यापि न मृष्येच्च स राज्ञो धर्म उच्यते।[4]
पुत्र के भी अपराध को सहन नहीं करना राजधर्म कहलाता है।
- भिनत्ति न च मर्यादां स राज्ञो धर्म उच्यते।[5]
कभी भी मर्यादा न तोड़ना राजधर्म कहलाता है।
- सम्पूजयति साधूंश्च स राज्ञो धर्म उच्यते।[6]
साधुओं का आदर करना राजधर्म कहलाता है।
- पूजयेदतिथीन् भृत्यान् स राज्ञे धर्म उच्यते।[7]
अतिथि और सेवकों की पूजा करना राजधर्म कहलाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 57.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 60.17
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 91.31
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 91.32
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 91.36
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 91.39
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 91.40
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज