विनाश (महाभारत संदर्भ)

  • किंचिदेव निमित्तं च भवत्यत्र क्षयावहम्।[1]

संसार में कोई भी कारण विनाशकारी बन जाता है।

  • बुद्धिर्व्यावर्तते चास्य विनाशे प्रत्युपस्थिते।[2]

विनाशकाल आने पर ऋजु की बुद्धि विपरीत हो जाती है।

  • सर्वं कृतं विनाशांतं जातस्य मरणं ध्रुवम्।[3]

जो रचना है सब नष्ट होगी और पैदा होने वाले की मृत्यु निश्चित है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 12.30
  2. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 17.7
  3. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 44.20

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः