- नास्तिकानंश्चौरान् विषये स्वे न वासयेत्।[1]
नास्तिकों और चोरों को अपने राज्य में न बसने दे।
- व्यवस्य सर्वमस्तीति नास्तिक्यं भावमुत्सृज्।[2]
(कर्मफल आदि) सब सत्य है ऐसा निश्चय कर नास्तिकता को त्याग दो।
- नास्तिको मूर्ख उच्यते।[3]
नास्तिक को मूर्ख कहते हैं।
- नास्तिको वेदनिंदक:।[4]
वेद की निंदा करने वाला नास्तिक होता है।
- वेदवादापविद्धांस्तु तान् विद्धि भृशनास्तिकान्।[5]
जो वेद के विरुद्ध चलते हैं उनकी भारी नास्तिक जानो।
- नालं गंतुम् हि विश्वासं नास्तिको।[6]
नास्तिक का विश्वास नहीं किया जा सकता।
- पारलौकिककार्येषु प्रसुप्ता भृशनास्तिक:।[7]
अत्यंत नास्तिक लोग परलोक के कर्मों की ओर से सोये रहते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 139.59
- ↑ वनपर्व महाभारत 31.40
- ↑ वनपर्व महाभारत 313.98
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 35.47
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 12.5
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 133.14
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 321.10
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