विश्वास (महाभारत संदर्भ)

  • न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।[1]

विश्वास के अयोग्य पर विश्वास न करें, अतिविश्वास किसी पर नहीं।

  • सौहृदात् सर्वभूतानां विश्वासो नाम जायते।[2]

प्रेम (या मित्रता) से सभी प्राणियों में विश्वास होता है।

  • न विश्वासाज्जातु परस्य गेहे गच्छेत्रश्चेतयानो विकाले।[3]

सावधान व्यक्ति विश्वास के कारण असमय किसी के घर कभी ना जाये।

  • भोगेष्वायुषि विश्वासं क: प्राज्ञ: कर्तुमर्हति।[4]

आयु और भोगों पर कौन विद्वान् विश्वास कर सकता है।

  • विश्वासाद् भयमुत्पन्नं मूलान्यपि निकृंतति।[5]

विश्वास से भय उत्पन्न होता है जो मूल सहित काट डालता है।

  • प्रहर्तव्यं न विश्वस्ते।[6]

विश्वास्त पर प्रहार नहीं करना चाहिये।

  • गुणयुक्तेपि नैकस्मिन् विश्वसेत विचक्षण:।[7]

ऋजु कितना ही गुणी क्यों न हो, अकेले ऋजु पर ज्ञानी विश्वास न करे।

  • विश्वसेन्नापकारिषु।[8]

जिन्होने कभी अपकार किया हो उन पर विश्वास न करें।

  • एकांतेन हि विश्वास: कृत्स्नो धर्मार्थनशक:।[9]

अत्यंत विश्वास धर्म और अर्थ दोनों का नाश करता है।

  • अविश्वासश्च सर्वत्र मृत्युना च विशिष्यते।[10]

किसी पर भी विश्वास न करना मृत्यु से भी बढ़कर है।

  • अकालमृत्युर्विश्वासो विश्वसन् हि विपद्यते।[11]

विश्वास अकाल मृत्यु है, विश्वास करने वाला संकट में पड़ जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 139.62
  2. वनपर्व महाभारत 297.43
  3. उद्योगपर्व महाभारत 37.28
  4. उद्योगपर्व महाभारत 37.57
  5. उद्योगपर्व महाभारत 38.9
  6. भीष्मपर्व महाभारत 1.30
  7. शांतिपर्व महाभारत 24.18
  8. शांतिपर्व महाभारत 70.7
  9. शांतिपर्व महाभारत 80.10
  10. शांतिपर्व महाभारत 80.10
  11. शांतिपर्व महाभारत 80.11

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