लोकयात्रा= जीविका
- लोकयात्रार्थमेवेह धर्मप्रवचनं कृतम्।[1]
आजीविका के निर्वाह के लिये ही धर्म प्रवचन किया गया है।
- विनिग्राह्मों लोकयात्राविघातक:।[2]
आजीविका में बाधा डालने वाले को नियंत्रण में रखना चाहिए।
- लोकयात्रा च द्रष्टव्या धर्मश्चात्महितानि च।[3]
आजीविका, धर्म और अपना हित तीनों पर दृष्टि रखनी चाहिये।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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