लोकयात्रा (महाभारत संदर्भ)

लोकयात्रा= जीविका

  • लोकयात्रार्थमेवेह धर्मप्रवचनं कृतम्।[1]

आजीविका के निर्वाह के लिये ही धर्म प्रवचन किया गया है।

  • विनिग्राह्मों लोकयात्राविघातक:।[2]

आजीविका में बाधा डालने वाले को नियंत्रण में रखना चाहिए।

  • लोकयात्रा च द्रष्टव्या धर्मश्चात्महितानि च।[3]

आजीविका, धर्म और अपना हित तीनों पर दृष्टि रखनी चाहिये।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शांतिपर्व महाभारत 15.49
  2. शांतिपर्व महाभारत 32.5
  3. अनुशासनपर्व महाभारत 37.16

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