- मा धर्ममभिशंकिथ:।[1]
धर्म पर शंका मत करो।
- प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति यो धर्ममभिशंकते।[2]
जो धर्म पर संदेह करता है उसका प्रायश्चित नहीं ह
- न फलादर्शनाद् धर्म:शंकितव्यो न देवता:।[3]
धर्म का फल दिखाई न दे इतने से धर्म और देवताओं पर संदेह न करें।
- नियतो यत्र धर्मो वै तमशंक: समाचार।[4]
जिम कर्म के करने में निश्चय ही धर्म है उसे बिना संकोच के करो।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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