पुत्र (महाभारत संदर्भ)

  • संतानं हि परो धर्म एवमाह पितामह।[1]

ब्रह्मा जी का वचन है कि संतान उत्पन्न करना परम धर्म है।

  • अण्डानि बिभ्रति स्वानि न भिदंति पिपीलिका:।[2]

चीटीयाँ भी अपने अण्डों का पालन करती हैं, उन्हें फोड़तीं नहीं।

  • पुत्र स्पर्शवतां वर:।[3]

स्पर्श करने योग्य वस्तुओं में पुत्र का स्पर्श सब से अच्छा है।

  • अभूतिरेषा यत् त्यक्त्वा जीवेज्जीवंतमात्मजम्।[4]

अपने जीवित पुत्र को त्याग कर जीना दुर्भाग्य की बात है।

  • प्रतिकूल: पितुर्यश्च न स पुत्र: सतां मत:।[5]

जो पिता के अनुकूल नहीं है सज्जन उस पुत्र को अच्छा नहीं मानते।

  • स पुत्र: पुत्रवद् यश्च वर्तते पितृमातृषु।[6]

माता-पिता के साथ पुत्रवत् व्ययहार करने वाला ही वास्तव में पुत्र है।

  • नानपत्यस्य लोका: संति।[7]

संतानहीन को लोक नहीं मिलते।

  • अनपत्यतैकपुत्रत्वमित्याहुर्धर्मवादिन:।[8]

धर्मवादी विद्वान एक पुत्र का होना न होने के समान मानते हैं।

  • मातपित्रो: प्रजायंते पुत्रा: साधारण:।[9]

पुत्र माता या पिता दोनों के लिये समान होते हैं।

  • पिता यथा स्वामी तथा माता न संशय:।[10]

नि:संदेह माता और पिता दोनों का संतान पर समान अधिकार होता है।

  • अपत्यं नाम लोकेषु प्रतिष्ठा धर्मसंहित।[11]

सभी लोकों में संतान से धर्ममयी प्रतिष्ठा होती है।

  • इत्यर्थमिष्यतेऽपत्यं तारयष्यिति मामिति।[12]

संतान की इच्छा इसीलिये की जाती है कि यह मुझे संकट से तार देगी।

  • सर्वथा तारयेत् पुत्र:।[13]

पुत्र सब प्रकार से (पिता को) तार दे।

  • पुत्रा दाराश्च भृदत्याश्च निद्रेहेयुरपूजिता।[14]

संतान, पत्नी और सेवकों का यदि आदर न किया जाये तो जला देते हैं

  • दृढं विद्म परं पुत्रं परं पुत्रात्र विद्यते।[15]

हम अच्छी प्रकार जानते हैं कि पुत्र से अच्छा कुछ नहीं होता है।

  • अन्यै: समृद्धैरप्यर्थैन सुतामन्यंते परम्।[16]

समृद्धि के अन्य पदार्थो के होने पर पुत्र से अधिक कुछ नहीं माना जाता

  • न चापि मूढा: प्रजने यतंति।[17]

मूढ लोग संतान उत्पन्न करने का यत्न नहीं करते हैं।

  • वृथा जन्म ह्मपुत्रस्य।[18]

पुत्रहीन का जन्म व्यर्थ है।

  • मृते भर्तरि पुत्रश्च वाच्यो मातुररक्षिता।[19]

पिता के मरने पर पुत्र यदि माँ की रक्षा नहीं करता तो वह निन्दनीय है।

  • आत्मजेषु परं स्नेहंसर्वभूतानि कुर्वते।[20]

सभी प्राणी अपनी संतान पर परम स्नेह करते हैं।

  • नरा: सर्वे अपत्यफलभागिन:।[21]

सभी मनुष्य अपनी संतान के किये हुये कर्मो के फल को भोगते हैं।

  • को हि नेच्छेत् प्रियं पुत्रं जीवंतं शाश्वती: समा:।[22]

अपना प्रिय पुत्र सदा जीवित रहे यह कौन नहीं चाहता।

  • शिष्या: पुत्राश्च दिहितास्तदपत्यं च धर्मिणाम्।[23]

धर्मात्माओं को शिष्य और पुत्र प्रिय होते है, तथा उनके पुत्र भी।

  • न हि पुत्रेण हैडिम्बे पिता न्याय्य: प्रबाधितुम्।[24]

घटोत्कच! पुत्र पिता को पीड़ित करे, यह न्यायोचित नहीं।

  • इच्छंति पितर: पुत्रान् स्वार्थहेतो:।[25]

स्वार्थ के लिये लोग पुत्रों की इच्छा करते हैं।

  • आत्मन: गुणवत्तमिच्छंति पुरुषा: पुत्रम्।[26]

पुरुष पुत्र को अपने से अधिक गुणवान् चाहते हैं।

  • पुत्रस्नेहस्तु बलवान्।[27]

पुत्र का स्नेह बलवान् होता है।

  • स्वमपत्यं विशिष्टं हि सर्व इच्छत्यनाविलम्।[28]

सभी चाहते हैं कि अपना पुत्र निर्मल और विशेष हो।

  • पुत्रदौहित्रयोरेव विशेषो नास्ति धर्मत:।[29]

धर्म की दृष्टि में पुत्र और दोहित्र (पुत्री के पुत्र) में कोई अंतर नहीं होता

  • अन्योऽप्यथ न विक्रेयो मनुष्य: किं पुन: प्रजा:।[30]

अपनी संतान तो क्या किसी भी मनुष्य को बेचना नहीं चाहिये।

  • नित्यश्राद्धेन संतति:।[31]

सदा श्राद्ध करते रहने से संतान मिलती है।

  • एष्टव्या बहत: पुत्रा:।[32]

अनेक पुत्र पैदा हों यह कामना करनी चाहिये।

  • पुत्रार्थो विहितो ह्मेष वार्धिके परिपालनम्।[33]

वृद्धावस्था में पालन करना ही पुत्र होने का फल है।

  • निदेशवर्ती च पितु: पुत्रो भवति धर्मत:।[34]

धर्म के अनुसार पुत्र पिता की आज्ञा के अधीन होता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 45.14
  2. आदिपर्व महाभारत 74.55
  3. आदिपर्व महाभारत 74.57
  4. आदिपर्व महाभारत 74.113
  5. आदिपर्व महाभारत 85.24
  6. आदिपर्व महाभारत 85.25
  7. आदिपर्व महाभारत 95.61
  8. आदिपर्व महाभारत 100.67
  9. आदिपर्व महाभारत 104.31
  10. आदिपर्व महाभारत 104.31
  11. आदिपर्व महाभारत 119.28
  12. आदिपर्व महाभारत 158.4
  13. आदिपर्व महाभारत 158.5
  14. वनपर्व महाभारत 2.57
  15. वनपर्व महाभारत 9.4
  16. वनपर्व महाभारत 9.5
  17. वनपर्व महाभारत 183.92
  18. वनपर्व महाभारत 200.4
  19. वनपर्व महाभारत 293.15
  20. उद्योगपर्व महाभारत 60.6
  21. उद्योगपर्व महाभारत 121.25
  22. भीष्मपर्व महाभारत 112.40
  23. द्रोणपर्व महाभारत 38.18
  24. द्रोणपर्व महाभारत 156.94
  25. द्रोणपर्व महाभारत 173.54
  26. द्रोणपर्व महाभारत 194.5
  27. स्त्रीपर्व महाभारत 13.13
  28. अनुशासनपर्व महाभारत 4.33
  29. अनुशासनपर्व महाभारत 45.13
  30. अनुशासनपर्व महाभारत 45.23
  31. अनुशासनपर्व महाभारत 57.12
  32. अनुशासनपर्व महाभारत 88.9
  33. आश्वमेधिकपर्व 90.58
  34. आश्रमवासिकपर्व महाभारत 4.8

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः