- सर्व: सर्वं न जानाति सर्वज्ञो नास्ति कश्चन।[1]
सब लोग सब कुछ नहीं जानते, सर्वज्ञ कोई नहीं होत।
- न हि ज्ञानमल्पकालेन शक्यम्।[2]
अल्प समय में ज्ञान नहीं मिलता।
- ज्ञाने तिष्ठन् न बिभेति मृत्यो:।[3]
ज्ञान में स्थित मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता।
- ज्ञानेन चात्मानमुपैति विद्वान्।[4]
विद्वान् ज्ञान से ही परमात्मा को पा लेता है।
- ज्ञानं वै नाम प्रत्यक्षम्।[5]
ज्ञान का फल प्रत्यक्ष है।
- सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।[6]
पार्थ! ज्ञान होने पर किसी कर्म को करने की आवश्यकता नहीं रहती
- सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि।[7]
ज्ञानरूपी नाव के द्वारा पाप के सागर को तर जाओगे।
- न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।[8]
संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ नहीं है।
- ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति।[9]
ज्ञान को पा लेने पर तत्काल ही परम शांति मिलती है।
- दुष्करं परमं ज्ञानं तर्केणनुव्यवस्यति।[10]
परम ज्ञान अतिकठिन है, ऋजु उसका तर्क से निर्णय करता है।
- ज्ञाननिष्ठेषु कार्याणि प्रतिष्ठाप्यानि।[11]
ज्ञानी लोगों को ही कार्य सौंपने चाहिये।
- इष्टं त्वनिष्टं च न मां भजेतेत्येतत्कृते ज्ञानविधि: प्रवृत्त:।[12]
प्रिय-अप्रिय फल मुझे न मिले (ज्ञान मिले) इसलिये ज्ञान का उपदेश है।
- ज्ञानमुत्पद्यते पुंसां क्षयात् पापस्य कर्मण:।[13]
पापकर्म के नाश होने से ही मनुष्य में ज्ञान का उदय होता है।
- ज्ञानपूर्वा भवेल्लिप्सा लिप्सापूर्वाभिसंधिता।[14]
पहले ज्ञान होता है फिर पाने की इच्छा और फिर कर्म करने का निश्चय
- यथाज्ञानमुपासंत: सर्वे यांति परां गतिम्।[15]
अपने ज्ञान के अनुसार उपासना करने वाले सभी परम गति को पाते हैं।
- ज्ञानागमेन कर्माणि कुर्वन् कर्मसु सिध्यति।[16]
बुद्धि से जानकर कर्म करने से अवश्य सिद्धि प्राप्त होती है।
- ज्ञानं प्लावयते सर्वें यो ज्ञानं ह्मनुवर्तते।[17]
जो ज्ञान का अनुकरण करता है ज्ञान उसके सारे भवबंधन काट देता है
- उन्मज्जंश्च निमज्जनंश्च ज्ञानमेवाभिसंश्रयेत्।[18]
संसारसागर में डूबता-तैरता (प्रत्येक दशा में) ज्ञान का ही आश्रय लें।
- परावरं तु भूतानां ज्ञानेनैवोपलभ्यते।[19]
प्राणियों के छोटे-बड़े का ज्ञान बुद्धि से ही होता है।
- जीवमात्मगुणं विद्यादात्मानं परमात्मन:।[20]
जीवात्मा को परमात्मा का ही अंश जानना चाहिये।
- ज्ञानं तु परमा गति:।[21]
ज्ञान तो परम गति है।
- कषाये कर्मभि: पक्वे रसज्ञाने च तिष्टति।[22]
कर्म से राग जैसे दोष जलने पर ऋजु रसस्वरूप ज्ञान में स्थित होता है।
- ज्ञाने परिचय: कर्तव्यस्तत्फलार्थिना।[23]
ज्ञान का फल चाहने वाले को ज्ञान से परिचय करना चाहिये।
- ज्ञानेन कुरुते यत्नं यत्नेन प्राप्यते महत्।[24]
ज्ञान से ही मनुष्य यत्न करता है और महान् ब्रह्म मिलता है।
- जन्तुर्ज्ञानेन मुच्यते।[25]
जीव ज्ञान से मुक्त होता है।
- न विना ज्ञानविज्ञाने मोक्षस्याधिगमो भवेत्।[26]
ज्ञान बिना मुक्ति नहीं
- ज्ञानं नि:श्रेय इत्याहु वृद्धा:।[27]
वृद्ध जन कहते हैं कि ज्ञान परम कल्याण का साधन है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत 72.8
- ↑ वनपर्व महाभारत 133.10
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 42.16
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 43.9
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 43.48
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 28.33
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 28.36
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 28.38
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 38.39
- ↑ कर्णपर्व महाभारत 69.55
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 26.6
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 201.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 204.8
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 206.6
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 217.30
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 235.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 269.50
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 237.1
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 237.10
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 241.19
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 270.38
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 270.38
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 309.8
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 320.30
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 320.50
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 326.22
- ↑ आश्वमेधिकपर्व महाभारत 50.3
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