ज्ञान (महाभारत संदर्भ)

  • सर्व: सर्वं न जानाति सर्वज्ञो नास्ति कश्चन।[1]

सब लोग सब कुछ नहीं जानते, सर्वज्ञ कोई नहीं होत।

  • न हि ज्ञानमल्पकालेन शक्यम्।[2]

अल्प समय में ज्ञान नहीं मिलता।

  • ज्ञाने तिष्ठन् न बिभेति मृत्यो:।[3]

ज्ञान में स्थित मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता।

  • ज्ञानेन चात्मानमुपैति विद्वान्।[4]

विद्वान् ज्ञान से ही परमात्मा को पा लेता है।

  • ज्ञानं वै नाम प्रत्यक्षम्।[5]

ज्ञान का फल प्रत्यक्ष है।

  • सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।[6]

पार्थ! ज्ञान होने पर किसी कर्म को करने की आवश्यकता नहीं रहती

  • सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि।[7]

ज्ञानरूपी नाव के द्वारा पाप के सागर को तर जाओगे।

  • न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।[8]

संसार में ज्ञान के समान पवित्र कुछ नहीं है।

  • ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति।[9]

ज्ञान को पा लेने पर तत्काल ही परम शांति मिलती है।

  • दुष्करं परमं ज्ञानं तर्केणनुव्यवस्यति।[10]

परम ज्ञान अतिकठिन है, ऋजु उसका तर्क से निर्णय करता है।

  • ज्ञाननिष्ठेषु कार्याणि प्रतिष्ठाप्यानि।[11]

ज्ञानी लोगों को ही कार्य सौंपने चाहिये।

  • इष्टं त्वनिष्टं च न मां भजेतेत्येतत्कृते ज्ञानविधि: प्रवृत्त:।[12]

प्रिय-अप्रिय फल मुझे न मिले (ज्ञान मिले) इसलिये ज्ञान का उपदेश है।

  • ज्ञानमुत्पद्यते पुंसां क्षयात् पापस्य कर्मण:।[13]

पापकर्म के नाश होने से ही मनुष्य में ज्ञान का उदय होता है।

  • ज्ञानपूर्वा भवेल्लिप्सा लिप्सापूर्वाभिसंधिता।[14]

पहले ज्ञान होता है फिर पाने की इच्छा और फिर कर्म करने का निश्चय

  • यथाज्ञानमुपासंत: सर्वे यांति परां गतिम्।[15]

अपने ज्ञान के अनुसार उपासना करने वाले सभी परम गति को पाते हैं।

  • ज्ञानागमेन कर्माणि कुर्वन् कर्मसु सिध्यति।[16]

बुद्धि से जानकर कर्म करने से अवश्य सिद्धि प्राप्त होती है।

  • ज्ञानं प्लावयते सर्वें यो ज्ञानं ह्मनुवर्तते।[17]

जो ज्ञान का अनुकरण करता है ज्ञान उसके सारे भवबंधन काट देता है

  • उन्मज्जंश्च निमज्जनंश्च ज्ञानमेवाभिसंश्रयेत्।[18]

संसारसागर में डूबता-तैरता (प्रत्येक दशा में) ज्ञान का ही आश्रय लें।

  • परावरं तु भूतानां ज्ञानेनैवोपलभ्यते।[19]

प्राणियों के छोटे-बड़े का ज्ञान बुद्धि से ही होता है।

  • जीवमात्मगुणं विद्यादात्मानं परमात्मन:।[20]

जीवात्मा को परमात्मा का ही अंश जानना चाहिये।

  • ज्ञानं तु परमा गति:।[21]

ज्ञान तो परम गति है।

  • कषाये कर्मभि: पक्वे रसज्ञाने च तिष्टति।[22]

कर्म से राग जैसे दोष जलने पर ऋजु रसस्वरूप ज्ञान में स्थित होता है।

  • ज्ञाने परिचय: कर्तव्यस्तत्फलार्थिना।[23]

ज्ञान का फल चाहने वाले को ज्ञान से परिचय करना चाहिये।

  • ज्ञानेन कुरुते यत्नं यत्नेन प्राप्यते महत्।[24]

ज्ञान से ही मनुष्य यत्न करता है और महान् ब्रह्म मिलता है।

  • जन्तुर्ज्ञानेन मुच्यते।[25]

जीव ज्ञान से मुक्त होता है।

  • न विना ज्ञानविज्ञाने मोक्षस्याधिगमो भवेत्।[26]

ज्ञान बिना मुक्ति नहीं

  • ज्ञानं नि:श्रेय इत्याहु वृद्धा:।[27]

वृद्ध जन कहते हैं कि ज्ञान परम कल्याण का साधन है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 72.8
  2. वनपर्व महाभारत 133.10
  3. उद्योगपर्व महाभारत 42.16
  4. उद्योगपर्व महाभारत 43.9
  5. उद्योगपर्व महाभारत 43.48
  6. भीष्मपर्व महाभारत 28.33
  7. भीष्मपर्व महाभारत 28.36
  8. भीष्मपर्व महाभारत 28.38
  9. भीष्मपर्व महाभारत 38.39
  10. कर्णपर्व महाभारत 69.55
  11. शांतिपर्व महाभारत 26.6
  12. शांतिपर्व महाभारत 201.11
  13. शांतिपर्व महाभारत 204.8
  14. शांतिपर्व महाभारत 206.6
  15. शांतिपर्व महाभारत 217.30
  16. शांतिपर्व महाभारत 235.11
  17. शांतिपर्व महाभारत 269.50
  18. शांतिपर्व महाभारत 237.1
  19. शांतिपर्व महाभारत 237.10
  20. शांतिपर्व महाभारत 241.19
  21. शांतिपर्व महाभारत 270.38
  22. शांतिपर्व महाभारत 270.38
  23. शांतिपर्व महाभारत 309.8
  24. शांतिपर्व महाभारत 320.30
  25. शांतिपर्व महाभारत 320.50
  26. शांतिपर्व महाभारत 326.22
  27. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 50.3

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः