क्षमा (महाभारत संदर्भ)

  • न श्रेय: सततं तेजो न नित्यं श्रेयसी क्षमा। [1]

कभी भी क्षमा न करना और सदा क्षमा करते रहना दोनों ठीक नहीं।

  • यो नित्यं क्षमते तात बहून् दोषान् स विंदति। [2]

जो सदा क्षमा करता रहता है उसे अनेक दोष प्राप्त होते हैं।

  • नित्यं क्षमा तात पण्डितैरपि वर्जिता। [3]

सदा क्षमा करते रहने को विद्वानों ने भी वर्जित किया है।

  • अबुध्दिमाश्रितानां तु क्षंतव्यमपराधिनाम्। [4]

अनजाने में किया गया अपराध क्षमा के योग्य होता है।

  • सर्वस्यैकोपराधस्ते क्षंतव्य:। [5]

सभी प्राणियों का एक अपराध क्षमा कर देना चाहिये।

  • लोकभयाच्चैव क्षंतव्यमपराधिन:। [6]

कभी-कभी समाज के भय से भी अपराधी को क्षमा कर देना चाहिये।

  • क्षंतव्यं पुरुषेणेह सर्वापत्सु। [7]

सभी आपत्तियों के समय में पुरुष को क्षमा कर देना चाहिये।

  • यदा हि क्षमते सर्वं ब्रह्म संपद्यते तदा। [8]

ऋजु जब सबकुछ सहन कर लेता है तब ब्रह्म (मुक्त) हो जाता है।

  • मया कृतान्यकार्याणि तानि त्वं क्षंतुमर्हसि। [9]

मैंने जो अनुचित कर्म किये हैं उनको आप क्षमा करें।

  • प्रमादात् सम्प्रमूढस्य भगवन् क्षंतुमर्हसि। [10]

भगवन्! असावधानी के कारण मोहग्रस्त को क्षमा करो।

  • क्षमया क्रूरकर्माणमसाधुं साधुना जयेत्। [11]

क्रूर (दयारहित) को क्षमा से तथा दुष्ट को उत्तम व्यवहार से जीतें।

  • क्षमा द्वंद्वसहिष्णुत्वम्। [12]

सर्दी-गर्मी मान-अपमान जैसे द्वंद्वों को सहन करना क्षमा है।

  • यदज्ञानादवोचं त्वां क्षंतुमर्हसि तन्मम्। [13]

अज्ञान के कारण मैने आप को जो कहा आप उसे क्षमा करें।

  • क्षमा गुणो ह्यशक्तामनां शक्तानां भूषणं क्षमा। [14]

क्षमा दुर्बल मनुष्य का गुण है और बलवान् का आभूषण है।

  • क्षमा वशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते। [15]

क्षमा लोक के वशीकरण का उपाय है क्षमा से क्या नहीं हो सकता।

  • क्षमैका शांतिरुत्तमा।[16]

क्षमा शान्ति का उत्तम उपाय है।

  • क्षमा गुणवतां बलम्। [17]

क्षमा गुणवालों का बल है।

  • हंति नित्यं क्षमा क्रोधम् । [18]

अमा सदा ही क्रोध का नाश करती है।

  • क्षमेदशक्य: सर्वत्र शक्तिमान् धर्मकारणात्। [19]

दुर्बल सदा क्षमा करे तथा बलवान् धर्म का विचार करके क्षमा करे।

  • अर्थानर्थौ समौ यस्य तस्य नित्यं क्षमा हिता। [20]

अर्थ और अनर्थ दोनों में समदर्शी के लिये क्षमा सदा ही हितकर है।

  • न तु पापोऽर्हति क्षमाम्। [21]

पापी क्षमा के योग्य नहीं होता।

  • क्षमा वै साधुमायाति न ह्यसाधूंक्षमा सदा। [22]

सज्जनों को सदा क्षमा करना आता है दुर्जनों को नहीं।

  • नास्थाने प्रक्रिया क्षमा। [23]

योग्यता से अधिक पद देना सहन नहीं किया जाता।

  • सदा सुचेता: सहेत नरस्येहाल्पमेघस:। [24]

बुधिमान् व्यक्ति सदा मूर्खों के कठोर वचनों को सहन करता रहता है।

  • क्षमया विपुला लोका: सुलभा हि सहिष्णुता। [25]

क्षमा से सहिष्णुता तथा अनेक लोक (या लोग) सरलता से मिल जाते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत28.6
  2. वनपर्व महाभारत28.7
  3. वनपर्व महाभारत28.8
  4. वनपर्व महाभारत28.27
  5. वनपर्व महाभारत28.29
  6. वनपर्व महाभारत28.32
  7. वनपर्व महाभारत29.32
  8. वनपर्व महाभारत29.42
  9. वनपर्व महाभारत77.13
  10. वनपर्व महाभारत181.39
  11. वनपर्व महाभारत194.6
  12. वनपर्व महाभारत313.88
  13. विराटपर्व महाभारत44.25
  14. उद्योगपर्व महाभारत33.49
  15. उद्योगपर्व महाभारत33.50
  16. उद्योगपर्व महाभारत33.52
  17. उद्योगपर्व महाभारत34.75
  18. उद्योगपर्व महाभारत39.42
  19. उद्योगपर्व महाभारत39.59
  20. उद्योगपर्व महाभारत39.59
  21. द्रोणपर्व महाभारत198.26
  22. शांतिपर्व महाभारत102.29
  23. शांतिपर्व महाभारत119.3
  24. शांतिपर्व महाभारत114.2
  25. शांतिपर्व महाभारत160.35

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