चिर = अधिक समय तक
- चिरणे मित्रं बध्नीयाच्चिरेण च कृतं त्यजेत्।[1]
चिरकाल में मित्रता करनी चाहिये और चिरकाल में ही छोड़नी चाहिये।
- चिरणे हि कृतं मित्रं चिरं धारणमर्हति।[2]
चिरकाल तक विचार कर बनाया गया मित्र चिरकाल तक रहता है।
- चिरं धर्म निषेवेत कुर्याच्चांवेषणं चिरम्।[3]
चिर काल तक धर्म का आचरण करें और चिरकाल तक अनुसंधान करें।
- चिरं विनीय चात्मानं चिरं यात्यनवज्ञताम्।[4]
दीर्घकाल तक मन को वश में रखने से मनुष्य अपमान से दूर रहता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 266.69
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 266.69
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 266.75
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 266.76
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