जाति (महाभारत संदर्भ)

  • वृथा जातिस्तदाऽऽयुष्मन् कृतिर्यावन्न विद्यते।[1]

जब तक कर्म न हो तो जाति व्यर्थ है।

  • सर्वे वर्णा नान्यथा वेदितव्या:।[2]

किसी भी वर्ण को ऐसे ही नहीं समझ लेना चाहिये।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 180.30
  2. शांतिपर्व महाभारत 318.90

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