गुरु के प्रति क्या व्यवहार न करें (महाभारत संदर्भ)

  • ये नाद्रेयंते गुरुमर्चनीयं पापॉल्लोकांस्ते व्रजंत्यप्रतिष्ठा:।[1]

गुरु का आदर न करने वाले प्रतिष्ठारहित पापपूर्ण लोकों में जाते हैं।

  • न कंथचन कौरव्य प्रहर्तव्यं गुराविति।[2]

कौरव! गुरु पर किसी भी प्रकार का प्रहार नहीं करना चाहिये।

  • गुरुणामवमानो हि वध इत्यभिधीयते।[3]

गुरुजनों का अपमान करना उनके वध करने के समान कहा गया है।

  • न जातु त्वमिति ब्रूयादापन्नोऽपि महत्तरम्।[4]

अपने से बड़ो को संकट में भी तुम कह कर न बोले।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 76.64
  2. द्रोणपर्व महाभारत 147.25
  3. कर्णपर्व महाभारत 70.52
  4. अनुशासनपर्व महाभारत 162.52 * जहाँ त्वं का निषेध वहाँ तू और तुम दोनों का ही निषेध है। मध्यम पुरुष के लिये दो ही सर्वनाम हैं आप ओर तू (संस्कृत में त्वम् और भवान्) तुम कोई भिन्न सर्वनाम नहीं है तू का ही बहुवचन है।

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