क्रोध (महाभारत संदर्भ)

  • क्रोधो हि धर्म हरित्। [1]

क्रोध धर्म का नाश करता है।

  • क्रोधमुत्पतितं जहि। [2]

उत्पन्न हुए क्रोध को मार डालो।

  • क्रोधो हंता मनुष्याणां क्रोधो भावयिता पुन:। [3]

क्रोध ही मनुष्यों को मारता है और जीतने पर भी कल्याणकारी है।

  • क्रोध: परमदारुण:। [4]

क्रोध बड़ा भयंकर होता है।

जो क्रोध को रोक लेता है उसकी समृध्दि होती है।

  • क्रोधमूलो विनाशो हि प्रजानामिह दृश्यते। [5]

संसार में प्रजा के विनाश का कारण क्रोध है ऐसा देखा जाता है।

  • क्रोधं त्यक्त्वा तु पुरुष: सम्यक् तेजाऽभिपद्यते। [6]

क्रोध को त्यागकर मनुष्य अच्छी प्रकार तेज को प्राप्त कर लेता है।

  • क्रोधस्त्वपण्डितै: शश्वत्तेज इत्यभिधीयते। [7]

मूर्ख लोग तेज और क्रोध को सदा एक ही मानते हैं।

  • क्रोधमूलो हि विग्रह:। [8]

क्रोध ही कलह की जड़ है।

  • क्रोध: शत्रु: शरीरस्थो मनुष्याणाम्। [9]

क्रोध मनुष्य के शरीर में रहने वाला शत्रु है।

  • क्रोधं हित्वा न शोचति। [10]

क्रोध को त्याग दिया जाये तो शोक नहीं करना पड़ता।

  • क्रोध: सुदुर्जय: शत्रु:। [11]

क्रोध वह शत्रु है जिसे जीतना कठिन है।

  • क्रोध: श्रियं हंति। [12]

क्रोध लक्ष्मी का नाश करता है।

  • क्रोधाद् भवति सम्मोह:। [13]

क्रोध से मोह उत्पन्न हो जाता है।

  • क्रोधं कुर्यान्नचाकस्मात्। [14]

किसी पर क्रोध करें परंतु अकारण नहीं।

  • क्रोधं निहंतुं यो वेद तस्य द्वेष्टा न विद्यते। [15]

जो क्रोध को मारना जानता है उससे कोई द्वेष नहीं करता।

  • लोभात् क्रोध: प्रभवति परदोषैरुदीर्यते। [16]

लाभ से क्रोध उत्पन्न होता है तथा औरों के दोष देखने से बढ़ता है।

  • क्रोधाद् दानफलं हंति। [17]

ऋजु क्रोध करके अपने दान के फल को नष्ट कर देता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत42.8
  2. आदिपर्व महाभारत178.22
  3. वनपर्व महाभारत29.1
  4. वनपर्व महाभारत29.2
  5. वनपर्व महाभारत29.3
  6. वनपर्व महाभारत29.21
  7. वनपर्व महाभारत29.22
  8. वनपर्व महाभारत29.25
  9. वनपर्व महाभारत206.32
  10. वनपर्व महाभारत313.78
  11. वनपर्व महाभारत313.92
  12. उद्योगपर्व महाभारत40.8
  13. भीष्मपर्व महाभारत26.63
  14. शांतिपर्व महाभारत70.11
  15. शांतिपर्व महाभारत94.9
  16. शांतिपर्व महाभारत163.7
  17. आश्वमेधिकपर्व महाभारत90.102

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