मर्यादा (महाभारत संदर्भ)

  • मर्यादा साधुसम्मता।[1]

सज्जन मर्यादा का सम्मान करते हैं।

  • एकांततो ह्ममर्यादात् सर्वोऽप्युद्विजते जन:।[2]

जो सर्वथा मर्यादा शून्य हैं उनमे सब लोग पीड़ित रहते हैं।

  • स्थापयेदेव मर्यादां जनचित्तप्रसासादिनीम्।[3]

लोगों के मन को प्रसन्न करने वाली मर्यादा की स्थापना करें।

  • अल्पेऽप्यर्थ च मर्यादा लोके भवति पूजिता।[4]

संसार में छोटे-छोटे कामों में भी मर्यादा को अच्छा माना जाता है।

  • दण्डनीतिमृते चापि निमर्यादमिदं भवेत्।[5]

दण्ड देने की व्यवस्था न रहे तो संसार में मर्यादा ही नहीं रहेगी।

  • मर्यादा लोकभाविनी।[6]

मर्यादा व्यक्ति अथवा समाज की उन्नति करती है।

  • मर्यादायां स्थिति: धर्म:।[7]

मर्यादा में स्थित रहना धर्म है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 112.13
  2. शांतिपर्व महाभारत 133.12
  3. शांतिपर्व महाभारत 133.13
  4. शांतिपर्व महाभारत 133.13
  5. वनपर्व महाभारत 150.32
  6. शांतिपर्व महाभारत 334.34
  7. अनुशासनपर्व महाभारत 22.25

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः