उपकार (महाभारत संदर्भ)

  • इच्छंति बहुलं संत: प्रतिकर्तु महत् प्रियम्। [1]

सज्जन उपकार के बदले में अनेक बार महान् प्रिय करना चाहते हैं।

  • प्रत्युपकुर्वन् बह्वपि न भाति पूर्वोपकारिणा तुल्य:। [2]

बहुत बड़ा प्रत्युपकार भी पहले किये गये उपकार के समान नहीं होता।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उद्योगपर्व महाभारत60.7
  2. शांतिपर्व महाभारत138.82

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः