- न ह्मसंन्यस्तसंकल्पो योगी भवति कश्चन।[1]
संकल्प त्याग किये बिना कोई योगी नहीं हो सकता।
- यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष:।[2]
प्रयत्न करने वाला योगी निष्पाप हो जाता है।
- संतुष्ट: सततु योगी।[3]
योगी सदा संतुष्ट रहता है।
- प्रत्यक्षहेतवो योगा:।[4]
योगीजन प्रत्यक्ष को प्रमाण मानते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 30.2
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 30.45
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत 36.14
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 300.7
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