नेता (महाभारत संदर्भ)

  • परनेयोऽग्रणीर्यस्य स मार्गान् प्रति मुह्मति।[1]

जिसका नेता औरों की बुद्धि से चलता है वह मार्ग में मोहित हो जाता है

  • प्रजास्तत्र न मुह्मंते नेता चेत् साधु पश्यति।[2]

नेता यदि ठीक दृष्टि या विचार रखता है तो प्रजा मोहित नहीं होती।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 55.4
  2. शांतिपर्व महाभारत 15.11

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