- विभागं भ्रातृणां न प्रशंसन्ति साधव:।[1]
भाईयों के विभाजन को सज्जन अच्छा नहीं मानते।
- बंधूना प्रियकृद् भव।[2]
बन्धओं का प्रिय कार्य करो।
- ज्येष्ठस्तातो भवति वै ज्येष्ठो मुञ्चति कृच्छ्रत:।[3]
बड़ा भाई पिता के तुल्य होता है, बड़ा भाई संकट से बचाता है।
- ज्येष्ठश्चेन्न प्रजानाति कनीयान् किं करिष्य्ति।[4]
बड़ा ही कुछ नहीं जानता तो छोटा क्या करेगा?
- भ्रातरं धार्मिकं ज्येष्ठं कोऽतिवर्तितुमर्हति।[5]
अपने धर्मात्मा बड़े भाई का कौन अपमान कर सकता है?
- भ्रातृणामस्तु सौभ्रात्रम्।[6]
भाईयों में भाईचारा बना रहे।
- यथैवात्मा तथा भ्राता विशेषो नास्ति कश्चन।[7]
अपने आप में और भाई में कोई विशेष अंतर नहीं होता है।
- विगृह्णीयान्न बंधुभि:।[8]
बंधुओं से ना लड़े।
- न ज्येष्ठो वावमन्यते दुष्कृत: सुकृतोऽपि वा।[9]
बड़ा भाई उचित कर्म करे या अनुचित, छोटा बड़े का अपमान न करे।
- ज्येष्ठो भ्राता पितृसमो मृते पितरि।[10]
पिता की मृत्यु हो जाने पर बड़ा भाई पिता के समान है।
- उपशिक्षस्व ज्येष्ठं भ्रातरम्।[11]
बड़े भाई से शिक्षा लो।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 29.21
- ↑ आदिपर्व महाभारत 135.16
- ↑ आदिपर्व महाभारत 231.4
- ↑ आदिपर्व महाभारत 231.4
- ↑ सभापर्व महाभारत 68.8
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 74.22
- ↑ स्त्रीपर्व महाभारत 15.15
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 70.5
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 105.13
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 105.16
- ↑ आश्रमवासिकपर्व महाभारत 11.14
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