कुल (महाभारत संदर्भ)

  • त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। [1]

कुल के हित के लिये एक को तथा ग्राम के लिये कुल को त्याग दें।

  • कुलकार्यं महाबाहो कश्चिदेक: कुलोद्वह: वहते। [2]

महाबाहो! सारे कुल में कोई एक ही पुरुष कुल का भार वहन करता है।

  • एकस्मिन्नेव जायेते कुले क्लीबमहाबलौ। [3]

एक ही कुल में महाबलवान् और दुर्बल उत्पन्न होते हैं।

  • कुलं वृत्तेन रक्ष्यते। [4]

सदाचार से कुल की रक्षा होती है।

  • धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवति। [5]

धर्म के नष्ट हो जाने पर पाप सारे कुल को अपने प्रभाव में ले लेता है।

  • धनात् कुलं प्रभवति। [6]

धन से कुलं का प्रभाव बढ़ता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत114.38
  2. सभापर्व महाभारत22.7
  3. उद्योगपर्व महाभारत3.3
  4. उद्योगपर्व महाभारत34.39
  5. भीष्मपर्व महाभारत25.40
  6. शांतिपर्व महाभारत8.22

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