- नारीणां चिरवासो हि बांधवेषु न रोचते।[1]
अधिक समय तक मायके में रहना नारियों के लिये अच्छा नहीं माना जाता
- अधिका किल नारीणां प्रीतिर्जामातृजा भवेत्।[2]
नारियों को पुत्र से भी अधिक प्रिय होता है दामाद।
- तुष्टे भर्तरि नारीणां तुष्टा: स्यु: सर्वदेवता।[3]
पति के संतुष्ट हो जाने पर नारियों के सभी देवता संतुष्ट हो जाते हैं।
- नारी तु पत्यभावे वै देवरं कुरुते पतिम्।[4]
पति के अभाव में नारी देवर को पति बनाती है।
- पतिं पुत्रमिवोपासते सा नारी धर्मभागिनी।[5]
पति की पुत्र की भाँति सेवा करने वाली नारी धर्म का फल पाती है।
- तुष्टपुष्टजना नित्यं या नारी धर्मेण युज्यते।[6]
जिस नारी से सभी पुष्ट और संतुष्ट रहते हैं उसे धर्मफल मिलता है
- मातापितृपरा नित्यं या नारी सा तपोधना।[7]
सदा माता-पिता के प्रति समर्पण नारी का तप है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 74.12
- ↑ आदिपर्व महाभारत 115.12
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 145.3
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 8.22
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 146.44
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 146.50
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 146.51
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