- दु:खार्तानां च सर्वेषां शिवकृत सततं शिव:। [1]
शिव सदा सभी दु:खी प्राणियों का कल्याण करते हैं।
- न हि दुर्वृत्तै: शक्यो द्रष्टुं महेश्वर:। [2]
दुराचारी लेने महेश्वर का दर्शन नहीं कर सकते।
- देवदेवप्रसादाच्च क्षिर्पं फलमवाप्यते। [3]
देवाधिदेव की प्रसन्नता से शीघ्र फल प्राप्त होता है।
- को हि शक्तो गुणान् वक्तुं देवदेवस्य। [4]
देवों के देव शिव के गुणों का वर्णन कौन कर सकता है?
- पुंलिड़्गं सर्वमीशानं स्त्रीलिड़्गं विद्धि चाप्युमाम्। अनु14.23
जो भी पुंलिड़्ग हैं उन्हें शिव तथा जो स्त्रीलिड़्ग हैं उन्हें उमा जानो। 257.यच्च विश्वं महत् पाति महादेवस्तत: स्मृत:। [5] महान् विश्व की रक्षा करते हैं अत: महादेव कहलाते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वनपर्व महाभारत221.2
- ↑ भीष्मपर्व महाभारत6.27
- ↑ शांतिपर्व महाभारत153.117
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत.14.7
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत161.8
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