हिंसक (महाभारत संदर्भ)

  • हिंसतां हि वध: शीघ्रमेव भवेद्।[1]

हिंसा करने वालों की शीघ्र ही हत्या होनी चाहिये।

  • प्राणिहिंसारतश्चापि भवते धार्मिक: पुन:।[2]

प्राणीहिंसा में लगे रहने वाला कभी-कभी बाद में धार्मिक हो जाता है।

  • प्रमीयमानानुन्मोच्य प्राणिहा विप्रमुच्यते।[3][4]

मारे जाते हुए को बचाने से, पूर्व की हत्या के पाप से मुक्त हो जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आदिपर्व महाभारत 163.4
  2. वनपर्व महाभारत 207.34
  3. शांतिपर्व महाभारत 152.29
  4. भूतपूर्व हिंसक अब किसी को मरने से बचाले तो पहले के पाप से मुक्त।

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