धीर = धैर्यशाली
- आत्महिते निविष्टो यो वर्तते स विजानाति धीर:।[1]
जो आत्मकल्याण में लगा रहता है वही ज्ञानी है, वही धीर है।
- धीरस्तु धैर्येर्ण तरंति मृत्युम्।[2]
धैर्य वाले लोग धैर्य से मृत्यु के पार चले जाते हैं।
- परीक्ष्यकारिणं धीरमत्यर्थ श्रीर्निषेवते।[3]
परीक्षा करके कार्य करने वाले धीर के पास अत्यंत श्री रहती है।
- धीरो नैव ह्रष्येन शोचेत्।[4]
धीर पुरुष न हर्ष करे न शोक करे।
- न च जातूपतप्यंति धीर: परसमृद्धिभि:।[5]
धीर जन दूसरों की समृद्धियों को देखकर जलते नहीं।
- प्रज्ञया निश्चिता धीरास्तारयंत्यबुधान्।[6]
तत्त्वज्ञानी धीर मनुष्य दूसरे अज्ञानियों को भी भवसागर से तार देते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदिपर्व महाभारत 89.5
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 42.11
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 129.29
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 25.31
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 228.33
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 236.2
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