- समक्षदर्शनात् साक्षी।[1]
सामने से देखने के कारण साक्षी कहलाता ह।
- सत्यं ब्रुवन् साक्षी धर्मार्थाभ्यां न हीयते।[2]
सत्य बोलने वाला साक्षी धर्म और अर्थ से वंचित नहीं होता।
- न साक्षि आत्मना समो नृणामिहास्ति कश्चन।[3]
संसार में आत्मा के समान मनुष्यों का कोई साक्षी नहीं।