साक्षी (महाभारत संदर्भ)

  • समक्षदर्शनात् साक्षी।[1]

सामने से देखने के कारण साक्षी कहलाता ह।

  • सत्यं ब्रुवन् साक्षी धर्मार्थाभ्यां न हीयते।[2]

सत्य बोलने वाला साक्षी धर्म और अर्थ से वंचित नहीं होता।

  • न साक्षि आत्मना समो नृणामिहास्ति कश्चन।[3]

संसार में आत्मा के समान मनुष्यों का कोई साक्षी नहीं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभापर्व महाभारत 68.84
  2. सभापर्व महाभारत 68.84
  3. शांतिपर्व महाभारत 321.53

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